बर्बादी की कगार पर आगरा का बूट उद्योग, काम 250 करोड़ से पहुंचा 20 करोड़ रुपए
- आगरा का बूट उद्योग बर्बादी की कगार पर पहुंच गया है. आगरा बूट कारिगरों और सप्लायरों का काम 250 करोड़ रुपए से गिरकर 20 करोड़ रुपए रह गया है. इसकी शिकायत बूट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने एक पत्र के जरिए केन्द्रीय एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी से की है.

आगरा का बूट उद्योग इस समय बर्बादी की कगार पर है. बताया गया है कि पिछले तीन साल में आगरा के उद्यमियों का टर्नओवर 250 करोड़ रुपये से सिमटकर 20 करोड़ रुपये सालाना हो चुका है. ये उद्योग सुरक्षा बलों के साथ ही अन्य सरकारी विभागों की सप्लाई पर निर्भर करता है. लेकिन अब सरकारी विभागों की खरीद नीति में अनावश्यक शर्त लगने से इसमें कमी आ रही है. बूट उद्योग मालिकों का कहना है कि यदि जल्द इस नीति की खामियों को दूर नहीं किया गया तो शहर के छोटे उद्योग बर्बाद हो जाएंगे.
बूट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने इसकी शिकायत करने के लिए केन्द्रीय एमएसएमई मंत्री नितिन गडकरी को एक पत्र लिखा है. इस पत्र में एसोसिएशन ने कुछ मांगे रखी हैं. उन्होंने कहा है कि जेम के तहत स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा हो, टर्नओवर के नाम पर छोटी इकाइयों के साथ भेदभाव न हो. जेम पोर्टल टेंडर प्रक्रिया में पंजीकृत मूल उपकरण निर्माता फर्मों को ही भाग लेने की अनुमति हो. अधिकतम सीमा खत्म कर क्षमता निर्धारण कर सप्लाई ऑर्डर बांट दिया जाना चाहिए.
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सचिव अनिल महाजन के अनुसार सरकारी खरीद पोर्टल जेम के कुछ अधिकारियों ने अपने पसंदीदा सप्लायरों को फायदा पहुंचाने के लिए बेवजह के नियम बना दिए हैं. इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल टर्नओवर से संबंधित अनिवार्यता किए जाने से हो रही है. उन्होंने बताया कि 2017 तक फौज को बूट सप्लाई के टेंडरों में कोई टर्नओवर संबंधी अनिवार्यता नहीं थी. लेकिन दिल्ली की कुछ फर्में जो स्वयं निर्माता भी नहीं थी, उन्हें फायदा पहुंचाने के लिए 100 करोड़ रुपये के टर्नओवर की लिमिट रख दी गई.
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जिस टेंडर में यह शर्त रखी गई, वह सिर्फ नौ करोड़ रुपये का था. इसके बाद तो लगातार साजिश के तहत छोटे उद्यमियों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर किया जाता रहा. यहां तक कि एनएसआईसी की तरफ से होने वाले क्षमता निर्धारण एवं मॉनिटरी लिमिट संबंधी प्रमाणन की प्रक्रिया भी बदल दी गई. इससे छोटी इकाइयों को सरकारी टेंडर में सिक्योरिटी राशि से राहत मिल जाती थी.
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