कैसे जीतेंगे कोरोना से जंग? गलत जानकारी देकर हेल्थ विभाग को गुमराह कर रहे मरीज
- आगरा में करीब 30 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो कोरोना टेस्ट का सैंपल देते समय गलत जानकारी दे रहे हैं। इन गलत जानकारियों का नुकसान स्वास्थ्य विभाग से लेकर अन्य लोगों पर भारी पड़ रहा है।
आगरा. कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए सैंपल देते समय सही जानकारी सिर्फ मेडिकल टीम ही नहीं संदिग्ध व्यक्ति के लिए भी काफी जूरूरी है। इसके बावजूद जिले में करीब 30 प्रतिशत लोग ऐसे हैं गलत जानकारी दी। इन गलत जानकारियों का नुकसान स्वास्थ्य विभाग से लेकर अन्य लोगों पर भारी पड़ रहा है।
आगरा जिले के बालूगंज में बीते 22 अप्रैल को एक संक्रमित केस मिला। जब टीम ने रेस्क्यू करने के लिए उस व्यक्ति को फोन किया तो नंबर बरेली में रह रहे किसी दूसरे का निकला। उसने बताया कि वह पॉजिटिव केस वाले ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता है। जिसके बाद टीम संक्रमित व्यक्ति के आधार कार्ड के जरिए संक्रमित के पते पर पहुंची और उसे अस्पताल में भर्ती कराया।
वहीं जिले में 29 मई को जब एक बुजुर्ग की पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद उसके नंबर पर फोन किया गया तो वह उसके रिश्तेदार का निकला। रिश्तेदार ने बताया कि वह आगरा से बाहर रहता है। जिसके बाद टीम उस व्यक्ति से पूछताछ के बाद किसी तरह बुजुर्ग के घर पहुंची।
बीते 11 जून को भी एक संक्रमित व्यक्ति ने अपना गलत मोबाइल नंबर जानकारी में फीड कराया। रिपोर्ट आने पर जब टीम ने उस नंबर पर फोन मिलाया तो वह उत्तराखंड गढ़वाल का नंबर निकला। रात में ही टीम ने संक्रमित व्यक्ति का रिकार्ड खंगलवाया तो उसका असली मोबाइल नंबर सामने आया। जिसके बाद व्यक्ति के पते पर जाकर उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया।
दरअसल, ये बताए गए तीन मामले तो सिर्फ बानगी भर हैं। अधिकतर लोग इसी तरह गलत मोबाइल नंबर लिखवा रहे हैं जिससे स्वास्थ्य विभाग की टीम को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। आलम ये है कि संक्रमित व्यक्ति को रेस्क्यू कर लाने में छह-छह घंटे तक लग जाते हैं। तब तक वह संक्रमित अपने घर पर ही रहता है। जिससे कोरोना फैलने का खतरा बढ़ जाता है।
लोगों की इस लापरवाही से डाटा फीडिंग में भी गड़बड़ी हो रही है। कई बार एक व्यक्ति के नाम दो-दो बार फीड हो जाते हैं जो प्रशासन के लिए बड़ी समस्या खड़ी कर देते हैं। जिसके बाद नए सिरे से फीडिंग कराकर जानकारी को सही किया जाता है। प्रशासन की ओर से कई बार अपील भी की जा चुकी है कि सैंपल देते समय संदिग्ध व्यक्ति के बारे में सही जानकारी दी जाए लेकिन काफी संख्या में लोग इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं।
बात सिर्फ यहीं नहीं खत्म हो जाती है। परेशानी ये भी है कि संक्रमित व्यक्ति अपने संपर्क में आने वाले लोगों की सही जानकारी नहीं देते। पॉजिटिव केस मिलने पर सबसे पहले उसके संपर्क में आने वाले लोगों के बारे में पूछा जाता है। लेकिन संक्रमित लोगों की सही जानकारी न देने से उन लोगों की स्क्रीनिंग ही नहीं हो पाती।
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, एक संक्रमित के कम से कम 50 लोगों के संपर्क में रहना माना जाता है। अगर इन सभी लोगों की ओर से सही जानकारी दी जाती तो 1 हजार मामलों में कम से कम 50 हजार से ज्यादा सैंपल हो जाने चाहिए थे, लेकिन जानकारी के अभाव में करीब 16 हजार सैंपल ही लिए गए हैं।
हालांकि स्वास्थ्य विभाग की टीम पॉजिटिव केस मिलने वाले इलाकों में खुद ही सर्वे कराती हैं। अब ये आंकड़ा 16 लाख से ज्यादा पहुंच चुका है, लेकिन संक्रमित केस वाले लोग भी अपने सीधे संपर्क में आए लोगों की जानकारी दे दें तो विभाग आसानी से काफी लोगों को ट्रैस कर सकता था।
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