कोरोना: दिल्ली ने खड़े किए हाथ तो आगरा ने थामा, वेंटिलेटर पर आए मरीज हो रहे ठीक
- आगरा के ही रहने वाले 68 साल के वासुदेव (बदला नाम) भी कोविड संक्रमित हुए। उनके परिवारीजनों को भी भारी गलतफहमी थी। लिहाजा वे भी उन्हें मेदांता में ले गए थे।

वे उम्रदराज और पुरानी बीमारियों से पीड़ित भी थे। कोविड-19 वायरस ने पकड़ा तो जान मुश्किल में आ गई। सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं किया। दिल्ली के बड़े अस्पताल में भर्ती करा दिया। यहां सुधार की बजाए मरीज वेंटिलेटर पर आ गए। लाखों रुपये फूंक दिए सो अलग। आखिर में दिल्ली ने भी हाथ जोड़ लिए। आगरा रेफर कर दिया। एसएन मेडिकल कॉलेज ने ऐसे मरीजों का हाथ थामा, मन लगाकर इलाज किया और स्वस्थ करके घर भी भेजा।
आपको यह आश्चर्यजनक लगेगा, लेकिन यह 100 फीसदी सत्य है। ताजगंज के रहने वाले प्रदीप कुमार बीपी, शुगर और किडनी के मरीज हैं। जैसे ही इन्हें कोविड संक्रमण का पता चला तो ठान लिया, आगरा में इलाज नहीं कराना है। सरकारी अस्पताल में तो कतई नहीं। किसी ने मेदांता अस्पताल दिल्ली की राय सुझाई। यह मान ली गई। प्रदीप मेदांता चले गए। वहां बेड ही नहीं मिला। आगरा लौट आए। इसके बाद दिल्ली गेट के एक निजी अस्पताल में भर्ती हो गए। यहां भी ठीक नहीं हुए। कई दिन भर्ती रहने के बाद आगरा में एक बड़े अस्पताल की फ्रेंचाइजी में भर्ती हो गए। यहां एल-2 श्रेणी की सुविधा है। चार दिन यहां काटने के बाद डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए।
बेहद गंभीर स्थिति में उन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया। प्रदीप 29 जून को एसएनएमसी के कोविड अस्पताल में भर्ती कर लिए गए। एसएनएमसी के अनुभवी डॉक्टरों, नर्सों की टीम ने गंभीरता से इलाज किया। ठीक आठवें दिन डॉक्टरों ने उन्हें तंदुरुस्त कर दिया। सोमवार को उन्हें तालियों की गड़गड़ाहट के बीच घर के लिए विदा भी कर दिया। जबकि दो निजी अस्पतालों में उन्होंने लाखों रुपये फूंक दिए। मेडीसिन विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विजय सिंघल और डॉ. अपूर्व जैन की टीम ने उनका इलाज किया। प्रदीप का पूरे परिवार ने एसएनएमसी के कुशल डॉक्टरों को धन्यवाद भेजा है।
वाईपैप पर आए 68 साल के वासुदेव
आगरा के ही रहने वाले 68 साल के वासुदेव (बदला नाम) भी कोविड संक्रमित हुए। उनके परिवारीजनों को भी भारी गलतफहमी थी। लिहाजा वे भी उन्हें मेदांता में ले गए थे। कई दिन भर्ती रहने के बाद सुधार नहीं हुआ तो रविवार को दिल्ली से एसएन अस्पताल ले आए। वे डायबिटीज, दिल और बीपी के मरीज हैं। यहां भी उन्हें वाइपैप मशीन पर ही रखा जा रहा है। फिलहाल उनकी स्थिति स्थिर है। आईसीयू में उनका इलाज मेडीसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. एके सिंह और एनेस्थियासिस्ट डॉ. अपूर्व मित्तल की टीम कर रही है।
वहां डॉक्टर यहां शिक्षक करते हैं इलाज
निजी अस्पताल और एसएन मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों में अंतर को समझना होगा। अधिकतर निजी डॉक्टर डिग्री लेने और इंटर्नशिप खत्म करने के बाद प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं। बहुत कम डॉक्टर हैं जो सेमिनार, कांफ्रेंस आदि में लगातार भागीदारी से खुद को अपडेट रखते हैं। जबकि एसएनएमसी के हर डॉक्टर को लगातार पढ़ाई करते रहना जरूरी है। कारण कि उन्हें विद्यार्थियों को पढ़ाना भी पड़ता है। पेपर भी बनाने होते हैं और उनकी कॉपियों, प्रयोगात्मक कार्यों का मूल्यांकन भी करना होता है। यानि यहां डॉक्टरों को पैदा करने वाले इलाज करते हैं।
हर तरह के गंभीर मरीज बचाए गए
कोविड के दौरान एसएनएमसी में हर आयु वर्ग और बीमारियों से ग्रसित गंभीर मरीजों का इलाज किया गया। श्वांस-दमा, टीबी, डायबिटीज, दिल, कैंसर, इन्फेक्शन, एड्स के रोगियों को कोविड होने के बावजूद बचाकर घर भेजा जा चुका है। हालांकि कुछ लोगों को अथक प्रयासों के बावजूद नहीं बचाया जा सका। यही कारण है कि आगरा में ठीक होने वालों की दर 81.78 प्रतिशत आंकी गई है। हालांकि करीब 07 प्रतिशत लोगों की मृत्यु भी अच्छा आंकड़ा नहीं है। फिर भी कुछ दिनों से आगरा में किसी कोविड संक्रमित की मौत नहीं हुई है।
अब तक करीब दो दर्जन रेफर आए
एल-1, एल-2 और एल-3 श्रेणी के अस्पतालों से बीते 25 दिनों में करीब दो दर्जन गंभीर मरीज एसएनएमसी आए हैं। इनमें से कुछ तो वेंटिलेटर पर आए थे। अंतिम सांसें गिन रहे थे। कुशल और अनुभवी डॉक्टरों ने उन्हें भी बचाया। जबकि वेंटिलेटर पर आने के बाद बमुश्किल दो प्रतिशत मरीज ही स्वस्थ हो पाते हैं। कुछ अति गंभीर भर्ती होने के चंद घंटों के बाद ही मौत का शिकार हो गए। सरकारी अस्पताल होने के नाते एसएनएमसी किसी को भर्ती करने से इनकार नहीं कर सकता। अब तो करीबी जिलों के भी गंभीर एसएनएमसी आ रहे हैं।
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