वाह रे सरकारी व्यवस्था! कोई दुनिया छोड़ गया तो कोई रिटायर, तब मिली स्थायी नौकरी
- आगरा के नगर निगम में करीब 24 साल से स्थायीकरण यानी परमानेंट नौकरी की आस देख रहे करीब 1090 कर्मचारियों को नगर निगम ने तोहफा दिया है। मगर कुछ लोगों के लिए यह तोहफा उतना खुश करने वाला नहींं।
आगरा, नीरज शर्मा
आगरा के नगर निगम में करीब 24 साल से स्थायीकरण यानी परमानेंट नौकरी की आस देख रहे करीब 1090 कर्मचारियों को नगर निगम ने तोहफा दिया है। मगर कुछ लोगों के लिए यह तोहफा उतना खुश करने वाला नहींं। आगरा नगर निगम में परमानेंट नौकरी का आलम यह है कि कुछ लोगों को स्थायी नौकरी तब मिली है, जब वह इस दुनिया में हैं ही नहीं। नगर निगम में 1996 से कर्मचारियों के स्थायीकरण के मामले लंबित पड़े थे, जिसके फाइल का निस्तारण अब जाकर हुआ है, मगर अब जब इस फाइल का निस्तारण हुआ तो पता चला कि जिन लोगों की नौकरी परमानेंट यानी स्थायी हुई है, उनमें से या तो कुछ रिटायर हो चुके हैं या फिर कई लोग तो दुनिया ही छोड़ चुके हैं। इस मामले के निपटारे के बाद करीब एक हजार से अधिक नगर निगम के कर्मचारियों को स्थायीकरण का लाभ मिला है। तमाम कर्मचारी ऐसे हैं जो अपनी नौकरी अंतिम पड़ाव पर हैं। उन्हें स्थायीकरण का लाभ मिलने से न केवल वेतन बढ़ोतरी होगी बल्कि अन्य भत्तों का भी लाभ मिलेगा।
तो चलिए जानते हैं आगरा में इसके अलग-अलग मामले
पहला मामला
हरीपर्वत वार्ड की रहने वाली मालती देवी और छत्ता क्षेत्र की निवासी लीलावती देवी ने नगर निगम की सेवा में अपनी सारी उम्र बिता दी। हाथ में झाड़ू लिए न जाने कितनी गलियों को साफ किया। नौकरी अस्थायी थी, अक्सर डर सताता था कि न जाने कब हटा दिया जाए, इसलिए अपनी ओर से किसी तरह की गलती की गुंजाइश नहीं छोड़ती थी। समय से काम पर जाना और काम पर आना, अपनी हाजिरी का पूरा ख्याल रखना। स्थायी कर्मचारियों से अधिक काम करती थीं और मेहनताना उनसे बहुत कम मिलते थे, मगर एक आस थी कि मेहनत और ईमानदारी से काम करेंगे तो इसका फल एक दिन जरूर मिलेगा और स्थायी हो जाएंगे। मगर वाह रे तकदीर.... और वाह रे सरकारी व्यवस्था...इसी उम्मीद के साथ दोनों रिटायर भी हो गईं पर नौकरी परमानेंट नहीं हुई। इसी मलाल के साथ दोनों इस दुनिया से विदा हो गईं, लेकिन जब वे दोनों अब दुनिया में नहीं हैं तो अब जाकर नगर निगम ने उनकी नौकरी परमानेंट कर दी है।
दूसरा मामला
यमुनापार निवासी रमेश ने भी नगर निगम में सालों तक इसी आस में सेवाएं दीं कि कभी न कभी तो नगर निगम प्रशासन उन्हें परमानेंट कर देगा मगर ऐसा हुआ नहीं। साल 1996 से ही उनका मामला लटका रहा। रमेश चंद रिटायर भी हो गए। सालों तक कानूनी लड़ाई भी लड़ी मगर सफलता नहीं मिला और कुछ वर्ष पहले इस दुनिया को अलविदा कर कर गए। अब जाकर गुरुवार को नगर निगम के अधिकारयों ने उनके स्थायीकरण की फाइल पर हस्ताक्षर किए हैं। स्थायी नौकरी देखने के लिए रमेश चंद तो इस दुनिया मे नहीं हैं लेकिन उनके परिवार के सदस्य खुश हैं। अपने अधिकार से वंचित इन कर्मचारियों को उनका हक मिलने पर नगर निगम की कर्मचारी यूनियनों ने भी खुशी व्यक्त की है।
नगर निगम की इस प्रक्रिया से उठे कई सवाल
नगर निगम में स्थायीकरण की यह प्रक्रिया एक सवाल छोड़ गई है कि 1996 से नगर निगम में इतने अधिकारी आए और चले गए लेकिन इन गरीब मजदूरों को बारे में किसी नहीं सोचा। जबकि नियमानुसार किसी को 1996 में स्थायी हो जाना चाहिए था तो किसी को 1998 में है। अनपढ़ कर्मचारी थे इसिलए नगर निगम के पढ़े लिखे अधिकारी उनका शोषण करते रहे। 2018-19 में तत्कालीन अपर नगर आयुक्त ने इन फाइलों को निकाला था तब करीब 80 कर्मचारियों स्थायीकरण का लाभ मिला था। उनके तबादले के बाद फिर से मामला अटक गया था। अब नगर आयुक्त अरुण प्रकाश के निर्देश पर अपर नगर आयुक्त केबी सिंह ने इन फाइलों का निस्तातरण किया है। करीब 1090 कर्मचारियों को लाभ दिया गया है। कर्मचारी कर्मचारी विनोद इलाबाहादी, सपन चौधरी, हरीबाबू वाल्मीकि, राजकुमार विद्यार्थी आदि ने कर्मचारियों को न्याय दिलाने पर नगर आयुक्त और अपर नगर आयुक्त का सम्मान किया।
वेतन वृद्धि और एरियर का होगा भुगतान
नगर निगम के इस फैसले के बाद जो लोग अभी नौकरी कर रहे हैं उन्हें तो लाभ होगा ही साथ ही जो लोग रिटायर हो चुके हैं और या जिनका निधन हो चुका है, उनके परिवार को लाभ मिलेगा। अस्थायी कर्मचारी को जिस तिथि में पर स्थायी किया जाना था उसी दिन से उसकी वेतन वृद्धि, पीएफ और अन्य भत्तों का लाभ मिलेगा। जो रिटायर हो चुके हैं उनकी पेंशन उसी दिन से तय होगी। इसके साथ ही सभी एरियर का भुगतान किया जाएगा।
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