आगरा:जान से हो रहा खिलवाड़, परिजनों से उठवाया संक्रमित का शव, अंत्येष्टि भी कराई

Smart News Team, Last updated: Fri, 12th Jun 2020, 10:01 AM IST
  • आगरा में कोरोना से किस तरह की लड़ाई लड़ी जा रही है, यह समझ से परे है। अस्पताल परिवार वालों से मरीज की पर्देदारी कर रहा है और स्वास्थ्य विभाग लोगों की जान से खेल रहा है। हैरानी की बात है कि मरीज का रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर भी शव परिवार को सौंप दिए जा रहे हैं और उनका अंतिम संस्कार भी परिजनों से ही कराया जा रहा है।
प्रतीकात्मक तस्वीर

कोरोना वायरस कहर के बीच आगरा में एक ऐसी घटना सामने आई है, जिसमें न सिर्फ कोविड-19 प्रोटोकॉल का उल्लंघन किया जा रहा है, बल्कि अस्पतालों की लापरवाही भी सामने आ रही है। दरअसल, आगरा में कोरोना से किस तरह की लड़ाई लड़ी जा रही है, यह समझ से परे है। अस्पताल परिवार वालों से मरीज की पर्देदारी कर रहा है और स्वास्थ्य विभाग लोगों की जान से खेल रहा है। हैरानी की बात है कि मरीज का रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर भी शव परिवार को सौंप दिए जा रहे हैं और उनका अंतिम संस्कार भी परिजनों से ही कराया जा रहा है। गुरुवार को राजपुर चुंगी के मेडिकल स्टोर संचालक के साथ भी यही किया गया है।

राजपुर चुंगी निवासी मेडिकल स्टोर संचालक राजेश दीक्षित की तबीयत मंगलवार को खराब हुई। उन्हें सांस लेने में दिक्कत थी। परिजन उन्हें निजी अस्पताल ले गए। यहां बिना कोविड परीक्षण के इलाज से इनकार कर दिया गया। इसके बाद उन्हें एसएन मेडिकल कॉलेज की इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। मरीज के पुत्र मोहित ने बताया कि मंगलवार शाम को उन्हें कोविड अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। वह उन्हें मोबाइल और चार्जर देकर आए थे। रात को बात करने पर मरीज ने बेटे को बताया कि ऑक्सीजन लगाने के बाद उनकी हालत में सुधार है। खाना खा लिया है। पानी भी पी लिया है। बुधवार सुबह पांच बजे बेटे ने उनसे दोबारा बात की। पिता ने बताया कि हालत ठीक है। इसके बाद आठ बजे फोन मिलाया तो वह बंद मिला। मोहित उनके लिए खाना लेकर कोविड अस्पताल पहुंच गए। कंट्रोल रूम में खाना दे दिया। इसके बाद शाम चार बजे तक परिवार के सभी सदस्य फोन लगाते रहे, कंट्रोल रूम में किसी ने फोन नहीं उठाया। जब अस्पताल पर दबाव डाला गया तो थोड़ी देर बाद बताया गया कि वह स्वस्थ हैं और आराम कर रहे हैं।

शाम 6:30 बजे बताया तबीयत बिगड़ गई

करीब एक घंटे बाद शाम 6:30 बजे मरीज को स्वस्थ बताने वालों ने बड़े बेटे को फोन करके बताया कि पिता की तबीयत बिगड़ गई है। उन्हें वेंटीलेटर पर लिया जा रहा है। बचने की संभावनाएं कम हैं। फोन करने वालों ने कहा कि वह आधा घंटे के बाद हालत पता कर लें। इसके बाद लगातार फोन मिलाए जाते रहे। शाम 7:30 बजे बताया गया कि डॉक्टरों के भरसक प्रयासों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।

रिपोर्ट के बारे में भी झूठ बोले जिम्मेदार

परिजनों ने अस्पताल प्रबंधन से शव के बारे में पूछा तो बताया गया कि गुरुवार सुबह 10 बजे आइए। लखनऊ से रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आने के बाद ही फैसला होगा। गुरुवार सुबह फोन पर बताया गया कि रिपोर्ट आ गई है, शिनाख्त करने के लिए आ जाइए। परिजन अस्पताल पहुंचे तो बताया गया कि वे पॉजिटिव थे। सच्चाई यह कि अब आगरा के सैंपल लखनऊ जाते ही नहीं हैं।

खुद उठाया शव, खुद ही अंतिम संस्कार

अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों को कोविड प्रोटोकॉल की घुट्टी पिलाई थी। शव को सौंपने के तरीके बताए। हालांकि इनका पालन नहीं किया गया। मोर्चरी में रखे शव को परिजनों से ही उठवाकर एंबुलेंस में रखवाया। मोक्षधाम में विद्युत शवदाह गृह में भी परिजनों ने ही शव को उतारा। अंतिम संस्कार किया। पुलिसकर्मी भी कागजी खानापूरी कर चले गए। किसी ने भी सहयोग नहीं किया। जबकि परिजनों को संक्रमित के शव के पास नहीं आने दिया जाता। विशेष परिस्थितियों में उन्हें दूर से दिखाया जाता है। अंतिम संस्कार से पहले परिजनों को पीपीई किट पहनाई जाती है। ऐसा कुछ नहीं किया गया।

परिवार ने बॉडी बैग पर उठाए सवाल

परिजनों ने बॉडी बैग पर भी सवाल उठाए हैं। उनके मुताबिक, यह सामान्य कोट वाले बैग की तरह था। ऊपर चेन लगी थी। संक्रमण से मरने वालों का शव अच्छी तरह सील किया जाता है। पॉलीबैग में पैक करने के बाद बॉडी बैग में सेनेटाइज करके रखी जाती है। परिजनों ने बताया कि अंत्येष्टि स्थल पर दो और शवों को लाया गया था। उनकी पैकिंग में अंतर था। वे कोविड के नियमों के मुताबिक लग रहे थे।

सच्चाई को बयां कर रहे हैं वीडियो

परिजनों ने स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही के वीडियो बनाए हैं। फोटो भी लिए हैं। इनमें दिख रहा है कि मोर्चरी के कमरे में शव रखे हैं। उसमें से वे अपने मरीज का शव ला रहे हैं। बिना सुरक्षा प्रबंधों के एंबुलेंस में शव को खुद ही रख रहे हैं। इस काम में उनकी मदद करते हुए नहीं दिख रहा है। यही हाल अंत्येष्टि स्थल का रहा। वहां एंबुलेंस के दो ड्राइवर गए थे। वे दूर खड़े रहे। अंत्येष्टि किस तरह करनी है, कोई बताने वाला नहीं था।

मृतक के पुत्र मोहित दीक्षित ने कहा कि हम पता नहीं क्या समझकर पिता को अस्पताल ले गए थे। लगा था कि वहां अच्छा इलाज मिलेगा और वे स्वस्थ हो जाएंगे। हमारे साथ बहुत बुरा किया। कंट्रोल रूम के फोन तक नहीं उठे। हमसे उनकी तबीयत के बारे में झूठ बोला गया। सुबह से शाम तक बात नहीं कराई गई। न उनका मोबाइल ऑन कराने की कोशिश की गई।

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