लॉकडाउन में 29 नवजात, 18 मां की मौत, सुरक्षित जच्चा-बच्चा बनकर रहा गया है ख्वाब
- जच्चा और बच्चा को सुरक्षित रखने के वायदे से शुरू हुई योजना आगरा में मजाक बनकर रह गई है। जिले में न तो जननी सुरक्षा के मापदंड दिखते हैं और न ही महिालओं को अस्पतालों में सुविधाएं मिलती है।

जच्चा और बच्चा को सुरक्षित रखने के वायदे से शुरू हुई योजना आगरा में मजाक बनकर रह गई है। जिले में न तो जननी सुरक्षा के मापदंड दिखते हैं और न ही महिालओं को अस्पतालों में सुविधाएं मिलती है। कोरोना लॉकडाउन में गर्भवती महिलाओं की स्थिति और भी ज्यादा खराब हो गई, जब कोरोना की वजह से किसी को अस्पताल में एडमिट नहीं किया गया तो किसी को सड़क किनारे ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। बीते कुछ समय में ऐसे कई केस सामने आए हैं, फिर भी विभाग इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर गंभीर नहीं हैं। सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने वाली महिलाओं को सुविधा देने के लिए अधिकारी भले कितने दावे करें, सच्चाई यही है कि जननी सुरक्षा योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है। सुरक्षित जच्चा-बच्चा ख्वाब बनकर रह गया है।
लॉकडाउन के बाद हालात और ज्यादा खराब हो गये हैं। 18 महिलाओं की मौत हो चुकी है। न तो उन्हें एंबुलेंस मिलती है। न ही सामुदायिक केंद्रों पर प्रसव होता है। सड़कों, रिक्शों और खेतों में महिलाओं के प्रसव हो रहे हैं। सुरक्षित प्रसव के अंतर्गत स्वास्थ्य विभाग की ड्यूटी है कि हर महिला को घर से लेकर अस्पताल तक हर सुविधा मिलें। लेकिन महिलाओं की मौत, नवजातों की मौत या सड़क पर प्रसव जैसी घटनाएं हो रहीं हैं।
केस - 1
9 मई को नूरी दरवाजा निवासी प्रीति प्रसव पीड़ा से कराह रही थी। पति की बाइक पर लेडी लॉयल अस्पताल पहुंची। दरवाजे पर गार्ड ने रोक दिया। बिना थर्मल स्क्रीनिंग अस्पताल में प्रवेश नहीं दिया। असहनीय दर्द से करहाती नीलम गेट के पास ही सड़क किनारे बैठ गई।
केस- 2
केके नगर, सिकंदरा से रीना अपने ससुरालीजन के साथ बाइक पर लेडी लॉयल अस्पताल पहुंची तो उसे भी थर्मल स्क्रीनिंग न होने की वजह से गेट के बाहर रोक दिया गया। सड़क से वाहन गुजरते रहे और रीना सड़क किनारे प्रसव पीड़ा से कराहती रही। उसने भी बच्ची को सड़क पर जन्म दिया था।
केस- 3
नगला मेवाती निवासी शबाना का पति उसे लेकर रिक्शे से सामुायिक केंद्र से लेकर लेडी लॉयल तक चक्कर लगाता रहा। लेकिन उसे भर्ती नहीं किया गया। महिला का प्रसव रिक्शे पर ही हो गया था। इसके बाद दाई ने घर पर प्रसव कराया।
केस- 4
सामुदायिक केंद्र एत्मादपुर में गर्भवती महिला को भर्ती नहीं किया गया। झरना नाले के पास आते ही उसे भयंकर प्रसव पीड़ा हुई। ऑटो में प्रसव हो गया। जहां उसके बच्चे को नहीं बचाया जा सका।
अब तक 29 नवजातों की मौत
मातृ-शिशु मृत्यु दर कम करने के उद्देश्य से जननी सुरक्षा योजना बनी है। इसके तहत महिला जिला अस्पताल व ग्रामीण क्षेत्रों में सीएचसी से जच्चा-बच्चा को नि:शुल्क घर तक छोड़ने के लिए एंबुलेंस की व्यवस्था की गई थी। लेकिन महामारी में सरकार, विभाग सभी ने यह बात भुला दी। जिले में एंबुलेंसों के अभाव में अब तक 29 नवजातों की मौत हो चुकी है।
खाना न नाश्ता और न आराम
आदेश हैं कि प्रसव के बाद जच्चा को 24 से 48 घंटे तक अस्पताल में रखा जाए ताकि जच्चा-बच्चा का जीवन सुरक्षित रहे। सरकारी अस्पतालों में प्रसूताओं को अक्सर 12 घंटे भी नहीं रखा जा रहा है। कुछ सामुदायिक केंद्रों पर प्रसव हो रहे हैं। वहां महिलाओं को चंद घंटों में छुट्टी दी जा रही है। निशुल्क नाश्ता व खाना भी नहीं दिया जा रहा है। अब लेडी लॉयल में भी छुट्टी दी जा रही है।
6000 देने का नियम 1400 मिल रहे
प्रसव के बाद महिलाओं को 6000 की धनराशि देने का नियम है। अगर पिछले एक साल का डाटा लिया जाए तो लेडी लॉयल, सामुदायिक केंद्रों में प्रसव कराने वाली महिलाओं को अभी भी सिर्फ 1000, 1400 मिल रहे हैं। जिन महिलाओं का रजिस्ट्रेशन सीएमओ कार्यालय में होता है। उन्हें ही 6000 मिलते हैं। जबकि यह योजना हर महिला के लिए है।
देहात में सर्वाधिक मौतें
गर्भवती महिलाओं की मौत के आंकड़ों के अनुसार पिनाहट, बाह, बसई अरेला में सर्वाधिक मौतें हुई हैं। यहां सिर्फ एक एएनएम के भरोसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र संचालित किया जाता है। लॉकडाउन के चलते अभी तक किसी भी प्रसूता को जननी सुरक्षा का लाभ नहीं मिला है। सरकारी अस्पतालों का डाटा सीएमओ कार्यालय से लिया गया है।
एक नजर -
लेडी लॉयल में मार्च 2019 से जनवरी 2020 तक
7056 महिलाओं को जननी सुरक्षा का लाभ
सामुदायिक केंद्रों का विवरण विभाग के पास नहीं
सीएमओ कार्यालय में पंजीकृतों का भी विवरण नहीं
1 मार्च से 24 जून तक हुए प्रसव
जिला महिला चिकित्सालय में
2813 नॉर्मल डिलीवरी
776 सिजेरियन डिलीवरी
सामुदायिक केंद्र
30 अर्बन और 13 ग्रामीण केंदों पर कुल 452 प्रसव कराए गए
लेडी लॉयल में
298 महिलाओं का टीकाकरण किया जा रहा है।
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