लॉकडाउन ने प्रकृति को दी संजीवनी,अब आफत न बन जाए अनलॉक, जानें कैसे बढ़ रहा खतरा
- देश में वायु एवं जल प्रदूषण से करीब 15 लाख मौत हर साल होती हैं। अंधाधुंध पेड़ों का कटान, नदियों से बालू खनन, पहाड़ों का खनन, प्लास्टिक कचरा, अनावश्यक प्रजातियों का पौधरोपण, तालाबों पर अतिक्रमण, वाहनों व कारखानों से निकलने वाला धुआं, नदियों में गिरते नाले व अपशिष्ट पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं।

कोरोना वायरस संकट और लॉकडाउन की वजह से इंसानी जिंदगी को काफी नुकसान हुआ है, मगर पर्यावरण पर इसका सकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। लॉकडाउन की वजह से दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी घरों में कैद हो गई, जिसका फायदा पर्यावरण को मिला और यह अपने पुराने रंग-रुप में निखर कर सामने आया। कोरोना लॉकडाउन में वायू प्रदूषण, जल प्रदूष और ध्वनि प्रदूषण में कमी आने से पर्यावरण स्वच्छ हो गया। प्रकृति के अद्भुत नजारे देखने को लगातार मिल रहे थे, मगर अब डर यह है कि जैसे-जैसे देश को लॉकडाउन से अनलॉक किया जाएगा, वातावरण कहीं फिर से प्रदूषण की भेंट न चढ़ जाए। विश्व पर्यावरण दिवस पर हिंदुस्तान अखबार की पड़ताल में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं।
देश में वायु एवं जल प्रदूषण से करीब 15 लाख मौत हर साल होती हैं। अंधाधुंध पेड़ों का कटान, नदियों से बालू खनन, पहाड़ों का खनन, प्लास्टिक कचरा, अनावश्यक प्रजातियों का पौधरोपण, तालाबों पर अतिक्रमण, वाहनों व कारखानों से निकलने वाला धुआं, नदियों में गिरते नाले व अपशिष्ट पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं। पर्यावरणविद डॉ. केपी सिंह के मुताबिक भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019 के अनुसार भारतीय वनों व वृक्षावरण क्षेत्र में कुल 5186 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि केवल 0.65 प्रतिशत है। लेकिन कार्बन स्टॉक में 21.3 मिलियन टन की वृद्धि भी हुई है, जो कि गंभीर चुनौती है।
उत्तर प्रदेश में भी पर्यावरण सुधार अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। पिछले दो सालों में पौधरोपण क्षेत्र में 100 वर्ग किमी व सघन वन क्षेत्र में 0.57 वर्ग किमी की कमी आई है। वहीं, वनक्षेत्र में 126.65 वर्ग किमी, घना वन 11.04 वर्ग किमी व खुले वनक्षेत्र में 116.8 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है, जो कि आबादी के हिसाब से बहुत कम वृद्धि दर है।
आगरा के पर्यावरण की है गंभीर स्थिति
उन्होंने बताया कि यमुना में प्रदूषण व भूगर्भ जल की विकराल समस्या है। आगरा के कुल 92 नालों में से 61 नालों का गंदा पानी सीधे यमुना में गिरता है। इन नालों से 216 एमएलडी सीवेज बिना ट्रीटमेंट यमुना में गिर रहा है। करीब 61 प्रतिशत सीवेज सीधे यमुना में गिरकर प्रदूषण बढ़ा रहा है।
यमुना के पानी की हालत हो रही खस्ता
उन्होंने बताया कि यूपीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2020 में यमुना नदी में डिसॉल्व आक्सीजन (डीओ) की औसत मात्रा 5.23 मिग्रा प्रति लीटर, बायो ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी ) 13.73 मिग्रा प्रति लीटर एवं टोटल कॉलिफार्म ( मानव व जीव अपशिष्ट) की औसत मात्रा 75000 एमएनपी प्रति लीटर है, जो कि तय मानक के स्तर से बहुत अधिक है।
भूगर्भीय जल स्तर ने सभी को हैरान किया
आगरा के भूगर्भीय जल की बात करें तो आगरा के 15 ब्लॉक में से बाह व जैतपुर को छोड़कर 13 ब्लॉकों को डार्क जोन में रखा गया हैं। ये पानी के गंभीर संकट को दर्शाता है। खारे पानी एवं फ्लोराइड युक्त पानी की गंभीर समस्या से आगरा वर्तमान में जूझ रहा है। आगरा में लगभग चार हजार आरओ प्लांट एवं चार लाख से ऊपर सबमर्सिबल से पानी का दोहन हो रहा है। इसके कारण भूजल तीसरे स्ट्रेज (90 से 150 मीटर) तक पहुंच गया है। यही हालत रहे तो आगरा को रेगिस्तान जैसे परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
आगरा में वनक्षेत्र और प्रदूषण निराशाजनक
उन्होंने बताया कि भारत वन स्थिति रिपोर्ट-2019 के अनुसार आगरा के जंगल का 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल कम हुआ है। 2017 की रिपोर्ट की तुलना में 2019 की रिपोर्ट के अनुसार 9.38 वर्ग किलोमीटर वन आवरण कम हुआ है। मध्यम घनत्व वाले जंगलों में 0.32 वर्ग किलोमीटर और खुले जंगल में 9.06 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है। यह खुले जंगल के झाड़ियों में बदल जाने से हुआ है। झाड़ियों का क्षेत्रफल 2017 में 64 वर्ग किलोमीटर था। वह 2019 की रिपोर्ट में बढ़कर 75.14 वर्ग किलोमीटर हो गया है। दिसंबर 2019 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कांप्रिहेंसिव एनवायर्नमेंटल पॉल्यूशन इंडेक्स (सेपी) की रिपोर्ट में आगरा के औद्योगिक क्षेत्रों में हवा और पानी में जहरीले तत्वों की वृद्धि हुई है।
पर्यावरणीय जैव विविधता के संरक्षण के लिए खड़ा होगा संकट
बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डवलपमेंट सोसाइटी के विशेषज्ञों की मानें तो आगरा में 500 से अधिक पक्षियों, तितलियों, मछलियों, कीटों, उभयचरों व अन्य वन्य जीवों की प्रजातियां हैं। आगरा की अनूठी जैव विविधता संकट के मुहाने पर खड़ी है। जंगल के क्षेत्रफल में कमी आने, जल स्तर में गिरावट, यमुना में प्रदूषण बढ़ने, नदियों से बालू खनन व पत्थरों के कटान से जीव-जन्तुओं के अस्तित्व पर संकट खड़ा हो रहा है। आगरा प्रवासी पक्षियों की बहुत बड़ी शरणस्थली है। जैव विविधता नष्ट होने से प्रवासी पक्षियों की आमद भी प्रभावित होगी।
हजारों पेड़ हो गए नष्ट
सरकारी आकड़ों के अनुसार विगत दस वर्षों में आगरा में एक लाख पेड़ों की कटाई हुई है। बिना देखभाल के शहर एवं यमुना नदी के किनारे वर्ष 2019 में लगाए गए 22 हजार पौधे नष्ट हो चुके हैं। वर्ष 2018 में आए दो तूफानों एवं मई 2020 के तूफान में हजारों पेड़ नष्ट हुए हैं।
ये रहा एक्यूआई का स्तर
लॉकडाउन की शुरुआत में 25 मार्च को आगरा में एक्यूआई की मात्रा केवल 60 थी। लॉकडाउन के दौरान भी एक्यूआई का स्तर औसत दर्ज किया गया। जबकि लॉकडाउन से पहले 12 जनवरी 2020 को एक्यूआई 325 यानि गंभीर स्तर तक पहुंच गया था।लॉकडाउन ने पर्यावरण को दी संजीवनी, अनलॉक न बने आफत
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