आगरा: कोराना ने लगाया त्योहार पर ग्रहण, मुहर्रम पर नहीं निकलेगा ताजिये का जुलूस

Smart News Team, Last updated: Wed, 19th Aug 2020, 7:35 AM IST
  • कोरोना का असर त्योहारों पर भी देखने को मिला है. इस बार आगरा में प्रशासन ने मुहर्रम पर निकलने वाले ताजियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस कारण आगरा के प्रसिद्ध ताजिए इस बार देखने को नहीं मिलेंगे. ना ही उनका जुलूस दिखाई देगा और ना ही खूबसूरत ताजियों के बीच मुकाबला होगा.
शायद इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है जब मोहब्बत की निशानी कहा जाने वाला ताजमहल इतने लम्बे समय से बंद पड़ा है। वरना ताजमहल का दीदार करने के लिए लंबी लाइनें लगती थीं।

आगरा. देश में कोरोना का लाल के चलते त्योहारों की चमक भी फीकी पड़ने लगी है. इस बार आगरा में मुहर्रम पर चांदी से लेकर गुलाब के फूलों, मेवा गुड़ के बने इको फ्रेंडली ताजिये देखने को नहीं मिलेंगे. जिले में कोरोना संक्रमण की वजह से जिला प्रशासन ने इस बार इस पर पाबंदी लगा दी है. इस कारण ना ताजिए बनेगें और ना जुलूस निकलेगा. आकर्षक ताजिये के बीच में मुकाबला भी नहीं होगा.

आगरा में हमेशा से ही ताजिए खास रहे हैं. मुगलों के समय से कटरा दबकैय्यान में रखा जा रहा आकर्षक गुलाब के फूलों का ताजिया पहली बार देखने को नहीं मिलेगा. इसके अलावा आगरा में पाय चौकी में चांदी का ताजिया पीपल मंडी में गेहूं का ताजिया , बेगम ड्योढ़ी में फूलों का ताजिया, मेवा कटरा में मेवा का ताजिया भी प्रसिद्ध है.

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मोहम्मद साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन और कर्बला के 72 शहीदों को महा-ए-मोहर्रम में शिद्दत से याद किया जाता है. इस साल इस्लामी नव वर्ष 20 अगस्त से शुरू होगा लेकिन ईद,बकरीद के बाद मोहर्रम पर भी कोरोना का ग्रहण लगता हुआ दिखाई दे रहा है. मोहर्रम महा की सातवीं तारीख पर आगरा में ताजिए सड़कों पर रखे जाते थे जबकि नौवीं और दसवीं तारीख को यह ताजिए आगरा के तीन कर्बला जुलूस के साथ न्यू आगरा, सराय ख्वाजा,गोबर चौकी में सुपुर्द-ए-खाक किए जाते थे. इससे पहले जुलूस में ताजिये की खूबसूरती का मुकाबला होता था. अच्छे ताजियों को भी पुरस्कार भी मिलता था लेकिन इस बार यह सब देखने को नहीं मिलेगा.

टिला पाय चौकी पर सूफी बुंदन मियां पिछले 40 साल से सबील सजा रहे हैं. इसमें फाइबर से अल्लाह के नाम लिखे जाते हैं. उसका पूरा सामान मुंबई से आता है. सबील का वजन 200 किलो से अधिक होता है. सबसे पीछे जन्नत का दरवाजा बनाया जा सकता जाता है, लेकिन इस बार यह सबील भी देखने को नहीं मिलेगी. इसके अलावा टीला पाय चौकी पर ही आसिफ अली कई वर्षों से युद्ध में काम आने वाले हथियारों को लगाते आ रहे हैं. इन हथियारों में तलवार, बनेटी, डंडे ,खंजर, मुगदर के साथ मुगल कालीन युद्ध में काम आने वाले हथियारों को भी दिखाया जाता था. इस बार वह भी ऐसा नहीं कर सकेंगे.

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शिया समुदाय की ओर से मोहर्रम की सातवीं तारीख को पपुराना इमामबाड़ा, गांधी चौक से बड़ा जुलुस निकाला जाता था. इस जुलूस में बच्चे, बूढ़े, युवा ,छुरियां और कमां का मातम करते हैं. कई अंजुमनें मातम करती हैं. साथ ही दसवीं मोहर्रम को भी जुलूस निकाला जाता है.

साल भर से मोहर्रम के लिए घर में ताजिये बनाने वाले कारीगरों को इस बार कोरोनावायरस के कारण काफी नुकसान हुआ है. ताजिये बनाने वाले कारीगर मुर्तजा ने बताया कि उनकी रोजी-रोटी मोहर्रम के महीने में ताजिए बनाकर ही चलती है. इस बार कोरोना ने उसे निगल लिया है. उन्होंने बताया कि आगरा में करीब 50 से अधिक ताजिये के कारीगर हैं जो संकट के दौर से गुजर रहे हैं.

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