आगरा में आई खंजन की पांच प्रजातियां, रामचरितमानस में भी है जिक्र
- खंजन यानी वेगटेल पक्षी ने आगरा में दस्तक दे चुके हैं. बारिश का मौसम खत्म होने के बाद यह पक्षी हिमालय के क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की तरफ आना शुरू कर देते हैं. ग्वालियर मार्ग पर मौजूद सेवला में भी इन खंजन पक्षियों की मौजूदगी देखी जा सकती है.
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आगरा: खंजन यानी वेगटेल पक्षी ने आगरा में दस्तक दे चुके हैं. बारिश का मौसम खत्म होने के बाद यह पक्षी हिमालय के क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की तरफ आना शुरू कर देते हैं. ग्वालियर मार्ग पर मौजूद सेवला में भी इन खंजन पक्षियों की मौजूदगी देखी जा सकती है. वेगटेल पर अध्य्यन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. केपी सिंह ने बताया था कि बारिश का मौसम खत्म होते ही यह मैदानी इलाकों में आना शुरू कर देते हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक सर्दियों तक यह खंजन पक्षी मैदानी क्षेत्रों में ही रहते हैं और मई के महीने में वापस हिमालय की तरफ चले जाते हैं. भारत में खंजन पक्षी की छह प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें व्हाइट वेगटेल, व्हाइट ब्राउडेड वेगटेल, वेस्टर्न यलो वेगटेल, सिट्रिन वेगटेल, ग्रे वेगटेल व फॉरेस्ट वेगटेल शामिल हैं. वहीं, फॉरेस्ट वेगटेल को छोड़नकर आगरा में बाकी सभी प्रजातियां आ चुकी हैं. डॉ. केपी सिंह के मुताबिक सेवला क्षेत्र के वेटलैंड (आर्द्रभूमि) के साथ ही चंबल और यमुना के नजदीकी क्षेत्रों जैसे कीठम झील, ताज नेचर वॉक, जोधपुर झाल के अलावा दूसरी जगहों पर तालाबों और नहरों के आसपास बड़ी वेगटेल देखने को मिलते हैं.
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बता दें कि वेगटेल का आकार 8-9 इंच और शरीर लंबा होता है. इस पक्षी का जिक्र तुलसीदास ने रामचरितमानस में भी किया है. उन्होंने लिखा था "जानि सरद रितु खंजन आए." इसका अर्थ है, सर्दियों का एहसास होते ही खंजन पक्षी ने दस्तक दे दी. तुलसीदास के अलावा मैथिलीशरण गुप्त ने भी महाकाव्य साकेत में खंजन के बारे में लिखा था. उन्होंने लिखा, "निरख सखी, ये खंजन आये, फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाये! स्वागत स्वागत शरद भाग्य से मैंने दर्शन पाये."
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