Putrada Ekadashi 2022: इस कहानी के बिना अधूरी है पुत्रदा एकादशी, जानें व्रत कथा

Pallawi Kumari, Last updated: Sun, 9th Jan 2022, 5:41 PM IST
  • पौष मास में पड़ने वाले पुत्रदा एकादशी का व्रत सभी एकादशी व्रतों में श्रेष्ठ माना जाता है. संतान की कामना पूर्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन महिष्मती के राजा से जुड़ी व्रत कथा पूजा में पढ़ी जाती है. आइये जानते हैं कब है पौष पुत्रदा एकादशी, पूजा विधि, मुहूर्त और व्रत कथा.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है. इसे वैकुण्ठ एकादशी और मुक्कोटी एकादशी भी कहते हैं. साल में दो बार पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा है. एक सावन मास में और दूसरी पौष मास में. शास्त्रों में एकादशी व्रत को श्रेष्ठ बताया गया है. जैसा कि नाम से ही पता चलता है, पुत्रदा एकादशी व्रत संतान प्राप्ति के लिए और संतान को सभी संकटों से भी बचाने के लिए किया जाता है.इस बार ये व्रत 13 जनवरी को रखा जाएगा.

पुत्रदा एकादशी पूजा विधि-

एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें. एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है. भगवान को धूप, दीप, अक्षत, रोली, फूल, नैवेद्य चढ़ाएं और पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें. व्रत कथा के बाद संतान गोपाल मंत्र पढ़ें. विष्णु भगवान के साथ मां लक्ष्मी की भी पूजा करें.

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पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-

पुत्रदा एकादशी की पूजा के बाद और आरती से पहले इस व्रत कथा को जरूर पढ़ना या सुनना चाहिए. इस व्रत कथा के बिना पुत्रदा एकादशी का व्रत अधूरा माना जाता है. इस व्रत कथा को सुनने से व्रत करने वाले की सभी मनाकामनाएं पूरी होती है. पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है. 

महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था. राजा के पास धन-वैभव की कोई कमी नहीं थी. लेकिन उसे कोई संतान नहीं था. इसे लेकर राजा परेशान रहता था. राजा दयालु भी था और अपनी प्रजा का भी पूरा ध्यान रखता था. लेकिन कोई संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी. तब राजा ने ऋषि मुनियों की शरण ली. इस दौरान राजा को पुत्रदा एकादशी व्रत के बारे में बताया गया. राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूरा किया और नियम से व्रत का पारण किया. इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह पूर्ण होने पर एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया. आगे चलकर राजा का पुत्र भी श्रेष्ठ राजा बना.

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