Pitru Paksha 2021: आज से पितृ पक्ष शुरू, जानिए क्या है श्राद्ध का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व

Pallawi Kumari, Last updated: Mon, 20th Sep 2021, 5:54 AM IST
  • आज से पितृ पक्ष की शुरुआत हो चुकी है. 20 सितंबर से शुरू होकर इस बार श्राद्ध 6 अक्टूबर तक चलेगा. यानी 16 दिनों के श्राद्ध कर्म में मृत्यु की तिथि के अनुसार उनका श्राद्ध किया जाता है. इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है.
आज से पितृ पक्ष शुरू. फोटो साभार-लाइव हिन्दुस्तान

अनंत चतुदर्शी और गणेश जी की विदाई के बाद आज से पितृ पक्ष शुरू हो गया है. हिंदू धर्म में पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष का खास महत्व होता है. भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से शुरू होकर पितृ पक्ष अमावस्‍या तक चलता है. 15 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष के दौरान ऐसे कई नियम होते हैं, जिसका पालन करना होता है. पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्‍मा की शांति के लिए पिंडदान, तर्पण करना चाहिए.कहा जाता है कि इस दौरान किसी तरह का शुभ काम करने से बचना चाहिए. 

शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितृ 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं. इस दौरान पितृ अपने परिजनों के आसपास रहते हैं. इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृ नाराज हों. शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में पितृ 15 दिन तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं. साथ ही इस दौरान बेहद सादा जीवन जीना चाहिए और सात्विक भोजन ही खाना चाहिए. कहा जाता है कि पितृ पक्ष में कोई भी शुभ काम नहीं करना चाहिए.

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पुत्र धर्म है श्राद्ध- हिंदू धर्म के अनुसार पितरों का श्राद्ध करने को पुत्र धर्म कहा गया है. इसलिए देवता और पितरों का श्राद्ध कार्य करने में कभी भी आलस नहीं करना चाहिए. जीवित माता पिता की अत्यंत श्रद्धा के साथ सेवा करना तथा मृत माता-पिता का श्राद्ध करना पुत्र का स्वधर्म है जिसे करना ही चाहिए. श्राद्ध हर व्यक्ति का कर्तव्य है . पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह खुश होकर आशीर्वाद देते हैं.

पितृ पक्ष में ना करें कोई शुभ काम- पितृ पक्ष यानी श्राद्ध पक्ष को लेकर ज्यादातर लोगों में धारणा बनी हुई है कि यह समय अशुभ होता है. इसलिए इस दौरान कोई भी नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए.इसलिए इस दौरान मांगलिक कार्य शादी, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते. हालांकि आप छोटे मोटे कार्य नियमित तौर पर कर सकते हैं.

पितृ पक्ष या श्राद्ध का वैज्ञानिक कारण- श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों के लिए किया गया काम और दी गई वस्तु उन्हें प्राप्त होती है या नहीं इसे लेकर लोगों को संदेह होता है. जैसे हमारे पूर्वज अपने कर्मानुसार किस योनि में उत्पन्न हुए हैं, जब हमें इतना ही नहीं मालूम तो फिर उनके लिए दिए गए पदार्थ उन तक कैसे पहुँच सकते हैं? क्या एक ब्राह्मण को भोजन कराने से हमारे पूर्वजों का पेट भर सकता है? न जाने इस तरह के कितने ही सवाल लोगों के मन में उठते होंगे. वैज्ञानिक मापदण्डों को इस सृष्टि की प्रत्येक विषयवस्तु पर लागू नहीं किया जा सकता. ऐसी कई बातें हैं, जिनका कोई प्रमाण न मिलते हुए भी उन पर विश्वास करना पड़ता है. पृथ्वी से दूसरे लोक में जाने और दूसरा शरीर प्राप्त करने में जीवात्मा की सहायता करके मनुष्य अपना कर्तव्य पूरा कर देता है. इसलिए इस क्रिया को श्राद्ध कहते हैं.

यही काल है जब सूर्य द्वारा अगले वर्ष की वर्षा हेतु समस्त पार्थिव स्रोतों से जल आहरण करने की प्रक्रिया आरम्भ होती है. यह मेघों का गर्भाधान काल होता है. सूर्य अपनी रश्मियों से सूक्ष्म ऊष्मा के रूप में जल ग्रहण करता है. इस दृष्टि से भी तर्पण हेतू किया गया जलदान उक्त कार्य में साधक होता है. चंद्रलोक के ऊपर जिस पितृलोक की कल्पना की गई है वह अंतरिक्ष का वह क्षेत्र प्रतीत होता है जहाँ ऊष्मा के रूप में जल संग्रहित होता है. सांस्कृतिक रूप से दिवंगत पूर्वजों के प्रति श्रद्धाभाव व्यक्ति के समक्ष एक आदर्श परंपरा के निर्माण के दायित्व का बोध कराता है. इनका उल्लेख वेदों, पुराणों, उपनिषदों और स्मृतियों, शतपथ ब्राह्मण आदि धर्म शास्त्रों में भी किया गया है.

Pitru Paksha 2021: 16 दिनों का होता है पितृ पक्ष, जानिए अपने पितरों का श्राद्ध करने की सही तिथि

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