Lunar Eclipse: क्यों लगता है चंद्र ग्रहण ? जानिए पौराणिक कथा, क्या कहता है साइंस

Pallawi Kumari, Last updated: Fri, 19th Nov 2021, 1:11 PM IST
  • आज शु्क्रवार को साल का आखिरी चंद ग्रहण लगा है. ग्रहण लगने के कारण को लेकर कई मत है. विज्ञान के अनुसार ग्रहण लगता खगोलीय घटना मानी जाती है. वहीं ज्योतिषाचार्यों ने अनुसार ग्रहण लगना शुभ नहीं माना जाता है. इसके पीछे चंद्र ग्रहण की एक पौराणिक कथा है, जो काफी प्रचलित है.
जानें ग्रहण लगने का पौराणिक कथा और वैज्ञानिक कारण.

साल 2021 का आखिरी चंद्र ग्रहण लगा है. वैज्ञानिकों के अनुसार ग्रहण को केवल एक खगोलीय घटना माना जाता है. लेकिन धर्म के अनुसार चंद्र ग्रहण को लेकर एक पौराणिक और प्रचलित कथा है. धार्मिक मान्यता ये भी है कि ग्रहण सिर्फ चांद को नहीं बल्कि भगवान को लगता है. इसलिए ग्रहण काल में भगवान की पूजा पाठ नहीं की जाती. आइये जानते हैं चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा. लेकिन सबसे पहले जानते हैं आज चंद्र ग्रहण का क्या है समय.

19 नवंबर चंद्र ग्रहण का समय- चंद्र ग्रहण दोपहर 12.48 बजे शुरू होगा और 4.47 बजे समाप्त होगा. ये आंशिक चंद्र ग्रहण होगा जो दोपहर बाद 2.34 बजे चरम पर होगा.  इसे भारत के अरुणाचल प्रदेश व असम के कुछ हिस्सों में थोड़ी देर के लिए देखा जा सकेगा. वहीं ऑस्ट्रेलिया, पूर्वी एशिया, उत्तर अफरीका व दक्षिण अफ्रीका और यूएसए/दक्षिण अमेरिका में चंद्र ग्रहण  को देखा जा सकेगा.

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चंद्र ग्रहण का वैज्ञानिक कारण- खगोलशास्त्र के अनुसार जब पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आती है तो चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ती है. इस दौरान वह दिखाई नहीं देता इसे ही चंद्र ग्रहण कहते हैं. क्योंकि चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है इसलिए वह ज्यादा देर के लिए पृथ्वी की छाया में नहीं रुकता और कुछ ही देर में पृथ्वी की छाया से हट जाता है. जब चंद्रमा का पूरा या आंशिक भाग पृथ्वी से ढक जाता है और सूरज की किरणें चंद्रमा पर नहीं पहुंचती तो ऐसी स्थिति में चंद्रग्रहण होता है.

चंद्र ग्रहण की पौराणिक कथा- समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत को लेकर देवताओं और दानवों के विवाद हो रहा था, तो इसे सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और असुरों से बचाकर देवताओं के पास अमृत पहुंचा दिया. लेकिन देवताओं के बीच राहु भी जा बैठा. लेकिन सूर्य और चंद्रमा की नजर राहु पर पड़ जाती है. इस बात की भनक लगते ही दोनों भगवान विष्णु को इस बारे में बता देते हैं. इस पर भगवान विष्णु सूदर्शषन च्रक से राहु का सिर काटकर उसे धड़ से अलग कर देते हैं.

 लेकिन तबतक राहु अमृत की कुछ बूंदे ग्रहण कर चुका होता है, इसलिए उसकी मृत्यु नहीं होती. इस घटना के बाद से सूर्य और चंद्रमा राहु के दुश्मन हो जाते हैं. इसलिए पूर्णिमा के दिन जब राहु चंद्रमा को ग्रसता है तो चंद्रमा कुछ देर के लिए छिप जाता है, जिससे उसकी रोशनी चली जाती है और अंधेरा हो जाता है, इसे ही चंद्रग्रहण कहते हैं.

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