रिटायर कृषि अफसर ने किया ऐसा काम कि रेलवे को देना पड़ेगा 400 करोड़ मुआवजा
- रिटायर्ड कृषि अधिकारी के एक काम से रेलवे के पसीने छूटे हुए हैं. हाई कोर्ट से भी कृषि अधिकारी के पक्ष में फैसला आया है. मुआवजे को लेकर मामला अब ट्रिब्यूनल में फंसा हुआ है.
देहरादून: अक्सर सिस्टम में कई लूप होल्स होते हैं जिनका लोग फायदा उठाकर बड़े से बड़ा कांड कर देते हैं. ऐसा ही एक कांड हुआ है उत्तराखंड में जहां एक कृषि अधिकारी ने सिस्टम के लूपहोल का फायदा उठाकर कानूनी रूप से गैरकानूनी काम कर रेलवे की नाक में दम कर दिया है. रेलवे भी सोच में पड़ गई है कि करें तो करें क्या. हुआ ये कि रिटायर्ड जिला कृषि अफसर ने खाली पड़ी जमीन पर इतने सारे फलदार पेड़ लगा दिए कि अब रेलवे को नई लाइन बिछाने के लिए उन्हें काटने के ऐवज में 400 करोड़ रूपये का मुआवजा देना पड़ रहा है.
मुआवजे के लिए ये मामला ट्रिब्यूनल के पास पहुंच गया है और रेलवे लाइन बिछाने का काम ठप्प हो गया है. मामला उत्तराखंड का है जहां रेलवे 126 किमी लंबी श्रृषिकेश-कर्णप्रयाग लाइन बिछा रही है. रेलवे ने तय किया था कि मलेथान में बड़ा स्टेशन बनेगा लेकिन अनिल किशोर जोशी नाम के व्यक्ति ने रेलवे लाइन की जद में आने वाली 34 लोगों की सिंचित जमीन किराए पर लेकर 7 लाख पौधे शहतूत के और तीन लाख अन्य फलदार पौधे लगवा दिए जो पेड़ बन गए. नियम ये कहता है कि जमीन पर जिसकी संपत्ति होती है वही मुआवजे का पात्र भी होता है. एक फलदार पेड़ का मुआवजा 2196 रूपये बनता है इस हिसाब से उनके बगीचे के पेड़ों का मुआवजा 400 करोड़ तक पहुंच गया है.
प्रशासन ने अनिल जोशी से कहा है कि संतरे के पेड़ के लिए तय मुआवजा 2196 रूपये गहै लेकिन शहतूत का पेड़ फलदार वृक्ष नहीं होता इसलिए शहतूत के प्रत्येक पेड़ के हिसाब से 4.50 पैसे का भुगतान किया जाएगा. अनिल जोशी हाई कोर्ट पहुंचे तो हाई कोर्ट ने उद्यान विभाग से पूछा कि शहतूत का पेड़ फलदार होता है या नहीं तो जवाब मिला हां, शहतूत का पेड़ भी संतरे की तरह फलदार होता है लिहाजा दोनों पेड़ों का मुआवजा बराबर होगा. मामला अब ट्रिब्यूनल में है और काम ठप्प पड़ा है.
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