रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से उत्तराखंड के फार्मा सेक्टर को झटका, महंगी होंगी दवाएं

Sumit Rajak, Last updated: Tue, 1st Mar 2022, 6:25 AM IST
  • रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध से उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को बड़ा झटका लगा है. एक ओर जहां उत्तराखंड की फार्म सेक्टर रूस, यूक्रेन सहित तमाम सीआइएस (कामनवेल्थ आफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) को दवाओं का निर्यात करती हैं. दूसरी ओर दवाओं के लिए कच्चा माल भी इन्हीं देशों से आयात किया जाता है. वहीं कच्चा माल 15 प्रतिशत महंगा होने के साथ कच्चे माल की सप्लाई भी बाधित हो रही है.
फाइल फोटो

देहरादून. रूस और यूक्रेन के मध्य युद्ध से उत्तराखंड के फार्मा उद्योगों को बड़ा झटका लगा है. एक ओर जहां उत्तराखंड की फार्म सेक्टर रूस, यूक्रेन सहित तमाम सीआइएस (कामनवेल्थ आफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) को दवाओं का निर्यात करती हैं. दूसरी ओर दवाओं के लिए कच्चा माल भी इन्हीं देशों से आयात किया जाता है. वहीं कच्चा माल 15 प्रतिशत महंगा होने के साथ कच्चे माल की सप्लाई भी बाधित हो रही है. युद्ध के कारण  बीते 10 दिन में एल्युमिनियम फॉइल (पैकेजिंग) के भाव 100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा हो गये है.  एल्युमिनियम फॉइल कोरोनाकाल में 265 रुपये किलो, उसके बाद 335 रुपये किलो हुई.  सप्ताह भर  के अन्दर युद्ध  के दौरान अब 470 रुपये किलो पहुंच गई है.

कच्चे माल के कीमत बढ़ने से दवाओं की पैकिंग और दामों पर भी असर देखने को मिलेगा. फार्मा सेक्टर रूस और यूक्रेन से बड़े पैमाने पर दवाओं के कच्चे माल और पैकेजिंग के रूप में विभिन्न रसायन और एल्युमिनियम फॉइल का आयात करती हैं. मौजूदा हालात की वजह से कच्चा माल कई जगह फंस गया है. युद्ध से पहले ही देश में कच्चे माल को डंप कर दिया गया है.

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फार्मा कंपनी के संचालक डॉ अनिल शर्मा, विनय श्रीधर और अर्चित विरमानी ने बताया कि कच्चे माल के अलावा पैकेजिंग पर भी विपरीत असर देखने को मिल रहा है. फार्मा संचालकों के मुताबिक तीन माह पहले कार्टन(पैकेजिंग) में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज हुई है.

बता दें कि प्रिन्टेड फॉइल 500 किलोग्राम से बढ़कर 600 रुपये किलोग्राम तक पहुंच गया है. कच्चा जैसे माल सेप्टिक जोल, पीवीसी 10 फीसदी तक महंगा हो गया है. वहीं इसी तरह अन्य कच्चे सामान पर भी युद्ध का असर देखने के मिला है. जबकि अकेले हरिद्वार जिले में लगभग 200 से छोटी बड़ी फार्मा सेक्टर हैं. रूस और यूक्रेन सहित सीआइएस (कामनवेल्थ आफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स) दवाओं के सबसे बड़े खरीदार हैं. फार्मा कंपनी संचालकों ने बताया कि यदि हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो फार्मा सेक्टर को बड़ा झटका लगेगा. जिससे उबरने में लंबा समय लग सकता है. वहीं पैरासिटामोल दवा बनाने में प्रयोग में आने वाले कच्चे माल का दाम सप्ताह भर में 50 रुपये किलोग्राम बढ़ गया है. 

फार्मा एसोसिएसन उत्तराखंड फार्मा एसोसिएसन के अध्यक्ष अनिल शर्मा ने बताया कि पहले कोरोना काल में फार्मा को मिलने वाला कच्चा माल महंगा कर दिया गया. कोरोना की दूसरी और तीसरी लहर समाप्त होने के बाद भी कच्चे माल के दाम कम नहीं हुए. अब अगर रूस और यूक्रेन का युद्ध लंबा चला तो तमाम दवा कंपनियों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

 

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