देहरादून: टपकेश्वर महादेव मंदिर में सवा लाख पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण शुरू

Komal Sultaniya, Last updated: Sat, 26th Feb 2022, 7:55 PM IST
  • भगवान शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा हुआ है. भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है. टपकेश्वर महादेव मंदिर में शनिवार से पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण प्रारंभ हो गया है.
देहरादून: टपकेश्वर महादेव मंदिर में सवा लाख पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण शुरू

देहरादून. भगवान शिव शंकर के देशभर में ही नहीं बल्कि पूरे विश्वभर में ऐसे कई प्राचीन मंदिर हैं जिनका इतिहास रामायण, महाभारत आदि से जुड़ा हुआ है. ऐसा ही भोलेनाथ का एक प्राचीन मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित है. वैष्णो देवी गुफा योग मंदिर टपकेश्वर महादेव देहरादून से सात कि.मी. की दूरी पर टपकेश्वर मंदिर स्थित है. टपकेश्वर मंदिर में शनिवार को सवा लाख पार्थिव शिवलिंगों का निर्माण प्रारंभ हो गया है.

इसका इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है, यही कारण है कि यह मंदिर अपने में खास माना जाता है. देशभर से कई लोग दर्शन करने आते हैं. यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है. पौराणिक मान्यता है कि आदिकाल में भगवान शंकर ने यहां देवताओं की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उन्हें देवेश्वर के रूप में दर्शन दिए थे.

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श्री धोलेश्वर महादेव मंदिर ग्राम धोंलास से लाई गई पवित्र मिट्टी में हरिद्वार महाकुम्भ का पवित्र गंगाजल मिलाकर 25 वां 1.25 लाख पार्थिव शिवलिंगों के निर्माण का कार्य किया जा रहा है. मन्दिर संस्थापक आध्यात्मिक गुरु आचार्य बिपिन जोशी ने बताया शिव का अर्थ है कल्याणकारी, देवाधिदेव महादेव सबको खजाने बांटते हैं और खुद सादगी से रहते हैं. उन्होने कहा कि बाजारवाद और उपभोक्तावाद के इस दौर में मनुष्य कमाना तो सीख गया है, किन्तु जीवन जीना भूल गया है, ऐसे में भगवान भोलेनाथ की प्रासंगिकता और बढ़ गई है. वेद विद्यालय शांति मंदिर कनखल से आए पंडित शुभम शुक्ला ने वेद मंत्रों का पाठ किया. इस अवसर पिथौरागढ़ से आई चंद्रा पंत, सुरेंद्र रावत, ममता रावत, हर्षपति रयाल, दीपेन्द्र नौटियाल, गणेश बिजल्वान, राजू आदि का विशेष सहयोग रहा.

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एक बार की बात है कि अश्वत्थामा ने अपनी माता कृपि से दूध पीने की इच्छा जाहिर की, जब उनकी यह इच्छा पूरी न हो सकी तब अश्वत्थामा ने घोर तप किया. जिससे प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने वरदान के रूप में गुफा से दुग्ध की धारा बहा दी. तब से ही यहां पर दूध की धारा गुफा से शिवलिंग पर टपकने लगी, जिसने कलियुग में जल का रूप ले लिया. इसलिए यहां भगवान भोलेनाथ को टपकेश्वर कहा जाता है. मान्यता यह भी है कि अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव से अमरता का वरदान मिला. उनकी गुफा भी यहीं है जहां उनकी एक प्रतिमा भी विराजमान है.

 

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