दावा: ज्यादा चर्बी बढ़ा सकती है खतरा, कम कर देगी याददाश्त व सोचने की क्षमता
- एक अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि शरीर बर ज्यादा चर्बी होने से न केवल आप बीमारियों का शिकार हो सकते हैं बल्कि आपकी सोचने और याद रखने की शक्ति भी कम हो जाती है.अधिक चर्बी होने की स्थिति में खासकर वयस्कों में सोचने और याददाश्त को खतरा हो सकता है.

कुछ लोगों के शरीर पर चर्बी इतनी चढ़ जाती है कि वह काफी परेशान हो जाते हैं. हालात यह हो जाते हैं कि उनसे उठने-बैठने की भी नहीं बनती है. कई स्टडी में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि अनावश्यक फैट के कारण कई गंभीर बीमारियां व्यक्ति को अपनी ग्रस्त में ले लेती हैं. शरीर के किसी भी हिस्से में जमी हुई चर्बी न केवल आपके शरीर पर अजीब दिखाई देती है. बल्कि यह कई दूसरी बीमारियों का शिकार भी बना देती हैं. एक अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि शरीर बर ज्यादा चर्बी होने से न केवल आप बीमारियों का शिकार हो सकते हैं बल्कि आपकी सोचने और याद रखने की शक्ति भी कम हो जाती है.अधिक चर्बी होने की स्थिति में खासकर वयस्कों में सोचने और याददाश्त को खतरा हो सकता है.
यह अध्ययन ‘जामा नेटवर्क ओपन पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. अध्ययन में बायोइलेक्ट्रिकल प्रतिबाधा विश्लेषण के माध्यम से 9,166 प्रतिभागियों के कुल शारीरिक वसा का आकलन किया गया. प्रतिभागियों में से 6,733 का मैग्नेटिक रिसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) किया गया, जो आंत की चर्बी के आसपास पेट की चर्बी को मापने के लिए किया गया. एमआरआई में मस्तिष्क में कम रक्त प्रवाह से प्रभावित मस्तिष्क के क्षेत्र में वैस्कुलर मस्तिष्क की चोट का भी आकलन किया.
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बना रहता है अधिक वसा का प्रभाव
प्रो. सोनिया आनंद कहा कि ‘मधुमेह, उच्च रक्तचाप के अलावा संवहनी (वैस्कूलर) मस्तिष्क की चोट जैसे कार्डियोवैस्कुलर जोखिम कारकों में वृद्धि पर इसके प्रभाव के बाद भी शरीर में अधिक वसा का प्रभाव बना रहता है.
मनोभ्रंश रोकने का सर्वोत्तम तरीका है चर्बी घटाना
न्यूरोलॉजिस्ट, वैज्ञानिक और कैलगरी विश्वविद्यालय में नैदानिक तंत्रिका विज्ञान की एसोसिएट प्रोफेसर और इस शोध पत्र की सह-लेखिका एरिक स्मिथ ने कहा कि ‘ज्ञान संबंधी कार्य को संरक्षित करना बुढ़ापे में मनोभ्रंश को रोकने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक है. यह अध्ययन बताता है कि अच्छा पोषण और शारीरिक गतिविधि, ठीक-ठाक वजन और शरीर में चर्बी का संतुलित प्रतिशत मनोभ्रंश को रोकती है.
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56 फीसदी से अधिक महिलाएं शामिल
प्रतिभागियों की उम्र 30 से 75 के बीच थी, जिनकी औसत आयु लगभग 58 वर्ष आंकी गई. इन प्रतिभागियों में 56 प्रतिशत से अधिक महिलाएं थीं जो कनाडा या पोलैंड की रहनेवाली हैं. इनमें बहुसंख्यक श्वेत यूरोपीय मूल के थे, जबकि लगभग 16 प्रतिशत अन्य नस्लीय पृष्ठभूमि से थे.
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