इंदौर: कोरोना के इलाज में आया 6 लाख का बिल, अस्पताल व तीन डॉक्टरों को नोटिस

Smart News Team, Last updated: Thu, 27th Aug 2020, 1:07 PM IST
  • इंदौर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में कोरोना का इलाज करा रहे व्यक्ति को मिला 6 लाख का बिल. बाहर से 1 लाख की मंगाई गई है दवा. शिकायत पर जिला प्रशासन ने अस्पताल पर छापा मार की कार्यवाही.
प्रतीकात्मक तस्वीर 

इंदौर के एक प्राइवेट अस्पताल में कोरोना मरीजों से मनमानी फीस वसूल कर इस आपदा में अमानवीय व्यवहार करने का मामला सामने आया है. दरअसल एक कोरोना मरीज के इलाज के लिए इंदौर के भंवरकुआं स्थित एप्पल हॉस्पिटल द्वारा छह लाख का बिल दिया गया. इस मामले में मरीज द्वारा शिकायत पर अस्पताल को नोटिस जारी किया गया है. तीन सरकारी डॉक्टर्स जो बिना अनुमति के वहां इलाज के लिए गए थे, उन्हें भी नोटिस दिए गए हैं. वहीं एप्पल अस्पताल से जब्त रिकाॅर्ड की शुरुआती जांच में कई तरह की अनियमितताएं सामने आने के बाद अस्पताल का लाइसेंस भी निरस्त होने की सम्भवना जताई जा रही है.

जांच के अनुसार उक्त मरीज से तीन हजार रुपए प्रति दिन यूनिवर्सल प्रोटेक्शन के नाम पर लिए गए. यह राशि वहां भर्ती सभी मरीजों से ली जा रही है. जांच समिति को जो बिल की कॉपी मिली उसमें निजी लैब में करवाई कोरोना जांच का वर्णन नहीं है और मरीज को दिए गए बिल में इसका भी शुल्क जोड़ लिया गया है.

सागर निवासी एक कोरोना मरीज के परिजन ने कलेक्टर को इसकी शिकायत की थी जिसमें कहा गया था कि 22 दिन तक भर्ती करने के बाद उन्हें छह लाख का बिल दिया गया. वहीं एक लाख रुपए की दवाई बाहर से मंगवाई गयी, जिससे इलाज का कुल खर्च सात लाख हो गया. शिकायत के बाद मंगलवार की रात जिला प्रशासन की जाँच समिति ने छापामार कर कार्रवाई की. शिकायत करने वाले मरीज के अलावा अस्पताल के अन्य मरीजों के बिल का रिकाॅर्ड भी लिया गया.

इस संबंध में सीएमएचओ ने कहा कि अस्पताल प्रशासन से तीन दिन के भीतर स्पष्टीकरण मांगा गया है. जवाब न मिलने या जवाब असंतोषजनक होने पर मेडिकल एक्ट 2019 की धारा 27 में प्रोफेशनल एवं एथिकल मिसकंडक्ट मान मप्र उपचर्या अधि. 1973 एवं नियम 1997 में पंजीयन निरस्त/ एफआईआर कराई जाएगी.

सरकारी डॉक्टरों को एक मरीज के लिए मिलता था 3 हजार रुपए

जिला प्रशासन ने तीन सरकारी डॉक्टर्स डॉ. अजय गुप्ता, डॉ. सुनील मुकाती तथा डॉ. मिलिंद बालदी काे नोटिस भेजा है. इन्हें इलाज करने हेतु प्रतिदिन 3 हजार रुपए का भुगतान किया गया. सरकारी डॉक्टर होते हुए भी इनके द्वारा निजी अस्पताल में मरीज देखना गलत है. नेशनल मेडिकल एक्ट 2019 की धारा 27 में इसे प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना गया है.

 

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