इंदौर :मुंबई से भी जुड़ा एडीएस-बी सिस्टम,लैंडिंग करने की सटीक जानकारी मिल सकेगी
- एडीएसबी सिस्टम होने से रनवे क्लीयरेंस की मिलेगी सटीक जानकारी. एडीएसबी सिस्टम से जुड़ने से अब कार्बन उत्सर्जन की मात्रा घटेगी. अब दिल्ली और जयपुर एयरपोर्ट से भी यह सिस्टम जोड़ने की तैयारी

इंदौर: इंदौर के एयरपोर्ट को जल्द ही और भी हाईटेक बनाने की तैयारी चल रही है. नई तकनीकों का इस्तेमाल अब इंदौर एयरपोर्ट पर भी किया जाएगा. इससे अब विमानों के उड़ान भरने व लैंडिंग करने की सटीक जानकारी मिल सकेगी. एयरपोर्ट पर एयर ट्रैफिक फ्लो का मैनेजमेंट और बेहतर बनाने के लिए एडीएस-बी सिस्टम को मुंबई एयरपोर्ट तक इंटीग्रेटेड कर दिया है. इससे मुंबई एयरपोर्ट अब इंदौर के आसमान में आने-जाने वाले विमानों पर भी नजर रख सकेगा.
एडीएस-बी सिस्टम अहमदाबाद और नागपुर एयरपोर्ट से पहले ही इंटीग्रेटेड है. अब जल्द ही इसे दिल्ली और जयपुर एयरपोर्ट से भी कनेक्ट करेंगे.
एयरपोर्ट डायरेक्टर अर्यमा सान्याल ने बताया कि वर्तमान में इंदौर के आसमान से गुजरने वाले विमानों को अहमदाबाद और नागपुर तक या फिर रडार की रेंज तक ही देखा जा सकता था.
सिस्टम के मुंबई से जुड़ने से इंदौर आने-जाने वाले और यहां के आसमान से गुजरने वाले विमानों को मुंबई एयरपोर्ट पर भी देखा जा सकेगा. पिछले साल 90 लाख रुपए खर्च कर एडीएस-बी सिस्टम को इंदौर एयरपोर्ट पर लगाया था.
एडीएस-बी सिस्टम में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगें विमान से टकराती हैं और जीपीएस की सहायता से विमान की सही स्थिति एटीसी की स्क्रीन पर दिखने लगती है. इसके बाद विमान की सही तरीके से लैंडिंग हो सकेगी. लैंडिंग और टेक ऑफ के समय में 7 से 10 मिनट की बचत होगी.
लोगों को होगा ये फायदा
विमानों को अब लैंडिंग के पहले कम चक्कर लगाना होगा. इससे कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन घटेगा. इस सिस्टम के इंटीग्रेट होने से विमानों को लैंडिंग के पहले आसमान में कम चक्कर लगाना पड़ेंगे. अभी विमान इंदौर एयरपोर्ट से अहमदाबाद, दिल्ली, नागपुर, मुंबई और जयपुर एयरपोर्ट के लिए जाते हैं, लेकिन वहां पहुंचने पर कई बार रनवे व्यस्त होने से उतरने के लिए काफी इंतजार करना पड़ता है और आसमान में ही चक्कर लगाना पड़ता है.
इस सिस्टम से एयरपोर्ट का एटीसी कंट्रोल पहले ही अनुमान लगाकर ऐसे विमानों को सही समय पर उड़ान भरने और वहां पहुंचने के निर्देश दे सकेगा. इससे विमानों को आसमान में बेवजह चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे. इससे कार्बन उत्सर्जन भी कम होगा.
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