इंदौर के नए अस्पतालों की होगी जांच, स्वास्थ्य विभाग खंगालेगा डॉक्टरों का रिकॉर्ड
- इंदौर के अस्पतालों में स्वास्थ्य विभाग की टीम अस्पतालों के कर्मचारियों के दस्तावेज, मेडिकल स्टाफ की आइडी की जांच करेगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि कोई डॉक्टर या पैरामेडिकल स्टाफ एक से ज्यादा अस्पतालों में तो काम नहीं कर रहा है. ऐसा पाये जाने पर डॉक्टर या पैरामेडिकल स्टाफ का एमसीआइ रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाएगा.
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इंदौर : मध्य प्रदेश के इंदौर में कोविड-19 के समय खुले नए अस्पतालों में तैनात डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और कर्मचारियों की जांच के लिए स्वास्थ्य विभाग की टीम जल्द ग्राउंड पर उतरने वाली है. स्वास्थ्य विभाग की टीम इन अस्पतालों के कर्मचारियों के दस्तावेज, मेडिकल स्टाफ की आइडी की जांच करेगी ताकि यह पता लगाया जा सके कि कोई डॉक्टर या पैरामेडिकल स्टाफ एक से ज्यादा अस्पतालों में तो काम नहीं कर रहा है. इसके साथ ही यह भी जांच की जाएगी कि जिन वर्कस की जानकारी दी जा रही है वो उस स्थान पर काम कर भी रहें हैं या नहीं.
गौरतलब है कि कई डॉक्टर या पैरामेडिकल स्टाफ काम कहीं और कर रहे होते हैं जबकि दूसरे अस्पतालों को भी अपनी आइडी दे देते हैं. इससे वह दो जगह वर्किंग हो जाते हैं जो नियम के मुताबिक गलत है. दरअसल कुछ दिनों पहले भोपाल में जांच के दौरान कुछ रेसीडेंट डॉक्टर और स्टाफ के एक से ज्यादा अस्पतालों में काम करने की पुष्टि हुई थी. इस आधार पर स्वास्थ्य विभाग की टीम से इंदौर सहित प्रदेश भर में मौजूद अस्पतलों की जांच करवाई जा रही है.
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इंदौर के जिला स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. संतोष सिसोदिया के मुताबिक अगले चार से पांच दिनों में स्वास्थ्य विभाग की पांच टीम अस्पतालों में जाकर जांच करेगी. डॉ. संतोष का कहना है कि शुरुआत में बीते 6 महीनों में खुले 40 नए अस्पतालों की जांच की जाएगी. वहीं जांच के दौरान यदि ऐसा कोई डॉक्टर या स्टाफ मिलता है जो एक से ज्यादा अस्पतालों में काम कर रहा है तो उसका एमसीआइ रजिस्ट्रेशन को निरस्त कर दिया जाएगा. सीएमएचओ कार्यालय की ओर से सभी डॉक्टरों को इस संबंध में एक शपथ पत्र भी सीएमएचओ कार्यालय को देने के निर्देश दिये गये हैं.
आएमए मध्य प्रदेश के पूर्व उपाध्यक्ष डॉ. संजय लोंढ़े बताते हैं कि लंबे समय से यह मांग की जा रही है कि जिस डॉक्टर का नाम क्लीनिक के बाहर बोर्ड पर लिखा हुआ है वही व्यक्ति क्लीनिक में मरीज देखे. साथ ही उसी पैथी का इलाज करे जिसकी डॉक्टर की डिग्री है. वे बताते हैं कि शहर भर में कई ऐसे डॉक्टर हैं जो प्रैक्टिस एलोपैथी की करते हैं लेकिन डॉक्टर आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी के होते है. आइसीयू में एमबीबीएस डॉक्टर होने चाहिए जबकि वहां दूसरी पैथी के डॉक्टर होते हैं. डॉ. संतोष बताते हैं कि साल 2016 में झोलाछाप डॉक्टरों के खिलाफ अभियान चलाया गया था. 200 डॉक्टरों की लिस्ट और तस्वीरें सीएमएचओ को दी गई थी. सात-आठ क्लीनिक बंद हुए भी थे लेकिन आगे कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई.
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