नहीं रहे राहत इंदौरी, 10 साल की उम्र में साइन बोर्ड के लिए हो गए थे मशहूर
- राहत इंदौरी का एक प्रसिद्ध शायरी जो आज ठीक ही बैठ रहा है- 'अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं शहरों में फ़साने मेरें.' क्योंकि दर्द को शब्दों में पिरोकर जताने वाला जादूगर आज दुनियां से रूखसत हो गया.

एमपी के इंदौर का नाम दुनियाभर की आवाम में कायम करने वाले मशहूर शायर राहत इंदौर आज दुनियां से रूखसत हो गए. आज हर कोई उनके बारे में जानना चाहता है. राहत साहब का जन्म 1 जनवरी 1950 में हुआ था. कहते है कि वह दिन इतवार का था और इस्लामी कैलेंडर के अनुसार ये 1369 हिजरी थी और तारीख 12 रबी उल अव्वल था. इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई जो बाद में हिन्दुस्तान की पूरी जनता के मुश्तरका ग़म को बयान करने वाले शायर हुए. कहते हैं कि परिवार की आर्थिक स्थिति शुरू से ही ज्यादा ठीक नहीं थी और इसी के चलते शुरुआती दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था.
उन्होंने अपने ही शहर में एक साइन-चित्रकार के रूप में 10 साल से भी कम उम्र में काम करना शुरू कर दिया था. चित्रकारी में उनकी ऐसी दिलचस्पी थी कि पूरे क्षेत्र में बहुत कम समय में अपनी एक पहचान कायम कर ली थी. उससे भी कम समय में वो इंदौर के सबसे बिजी चित्रकार बन गए थे. क्योंकि उनकी प्रतिभा, असाधारण डिज़ाइन कौशल, शानदार रंग भावना और कल्पना की है और इसलिए वह प्रसिद्ध भी हैं. यह भी एक दौर था कि ग्राहकों को राहत के हाथों से बने चित्रित बोर्डों को पाने के लिए महीनों तक का इंतजार करना भी स्वीकार था. यहाँ की दुकानों के लिए किया गया पेंट कई साइन बोर्ड्स पर इंदौर में आज भी देखा जा सकता है.
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