जयपुर: सरकारी थर्मल पावर प्लांटों में अब बिना धुले ही होगा कोयला का उपयोग
- केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने गजट जारी कर पावर प्लांटों में खुले कोयले के उपयोग की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है.

जयपुर| अब राजस्थान की सरकारी थर्मल पावर प्लांट में बिना धुले हुए कोयले से बिजली बनाई जा सकेगी. केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय ने गजट जारी कर पावर प्लांटों में खुले कोयले के उपयोग की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया है. इसके पूर्व थर्मल पावर प्लांट में केवल खुले कोयले से ही बिजली बनाने का नियम था. नए नियमों में अब कोयला खदानों से कोयला निकलकर सीधे पावर प्लांटों में पहुंचेगा और इसी कोयले से बिजली का उत्पादन किया जाएगा.
विशेषज्ञों की मानें तो इससे बिजलीघरों के खर्चे में कमी आएगी और राजस्थान विद्युत विनियामक आयोग अगली बार टैरिफ तय करते समय इस खर्चे से बिजली खरीद की टैरिफ कम होगी. प्रदेश में कोटा, सूरतगढ, कालीसिंध, छबड़ा थर्मल पावर प्लांट्स में बिलासपुर सहित अन्य जगह की खदानों से कोयला सप्लाई होता है.
थर्मल पावर प्लांट कोटा के चीफ इंजीनियर ए के सक्सेना ने बताया कि फिलहाल धुला हुआ और बिना धुला दोनों ही कोयला बिजलीघर में उपयोग हो रहा है. हेडक्वार्टर में केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्रालय के गजट नोटिफिकेशन को दिखवा रहे हैं.
केंद्र सरकार ने 2014 में कोयला खदानों से 500 किलोमीटर दूर स्थित थर्मल पावर प्लांट में कोयला सप्लाई करने से पहले उसकी धुलाई जरूरी कर दी थी. सरकार ने जलवायु परिवर्तन की चर्चाओं के बाद यह लागू किया था. सरकार की दलील थी कि वह कोयला की खपत कटौती करने के बजाए उत्सर्जन कंट्रोल पर ध्यान देगा.
इसके बाद 2016 में 500 किलोमीटर से दूर स्थित बिजलीघरों में सप्लाई होने वाले कोयल में राख की मात्रा तिमाही औसत पर 34 फीसदी से अधिन नहीं होने की पाबंदी लगा दी थी. इसके लिए कंपनियों को निर्देश दिया था कि धुले हुए या कम राख वाले कोयले की सप्लाई करें.
नीति आयोग ने साल के शुरुआत में रिपोर्ट दी थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि खुला कोयला थर्मल पावर प्लांट को सप्लाई करने के बाद कोयले के रूप में जो अपशिष्ट बच जाता है, उसका उपयोग छोटे उद्योग करते है. इससे बिजलीघरों से उत्पन्न प्रदूषण की तुलना में छोटे उद्योगों की चिमनियां ज्यादा प्रदूषण फैलाती है. जिसे कंट्रोल करना मुशिकल होता है.
नोटिफिकेशन में कोयला मंत्रालय की दलील है कि वॉशरी में कोयले की धुलाई के दौरान पर्यावरण को नुकसान होता है. कोयले की धुलाई के लिए पानी की ज्यादा जरूरी पड़़ती है. भूजल दोहनसे जल स्तर में तेजी से गिरावट आ रही है. कोयले के कीचड़ व उड़ते कोल के कण भी पर्यावरण को प्रदूषित कर रहे हैं.
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