जयपुर: कोरोना काल में अच्छे आचरण वाले बंदियों को मिलेगा पैरोल का तोहफा

Smart News Team, Last updated: Thu, 5th Aug 2021, 9:31 AM IST
  • कोरोना के कारण जल्द ही जेलों से बंदियों को पैरोल पर रिहा किया जाएगा. इसमें जयपुर जेल के भी बंदी शामिल होंगे. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जेल विभाग ने पैरोल संबंधी कवायद पर काम शुरु कर दिया है.
प्रतिकात्मक तस्वीर 

जयपुर. जयपुर सेंट्रल जेल समेत प्रदेश की अन्य जेल में बंद अच्छे आचरण वाले बंदियों को पैरोल का तोहफा मिलेगा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल ही में दिए गए एक निर्णय से देश भर की जेलों में बंद अच्छे आचरण वाले बंदियों को पैरोल मिलेगी. राजस्थान जेल विभाग को सुप्रीम कोर्ट का आदेश मिल चुका है. आदेश मिलने के साथ ही जेल विभाग पैरोल देने की कवायद में जुट गया. रविवार को अवकाश होने के बावजूद जेल प्रशासन ने प्रदेश भर में बंद बंदियों की सूची तैयार की. जेल डीजी राजीव दासोत ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश मिलने के बाद सूची बनाई गई. इसमें 55 बंदी पैरोल से लौटे हैं. उन्हें 90 दिन के पैरोल पर छोड़ा जाएगा. न्यायालय के आदेश के मुताबिक नए 35 बन्दी भी पैरोल के पात्र हो गए हैं. जो बंदी 90 दिन की पैरोल पर चल रहे हैं उनकी पैरोल की अवधि बढ़ा दी जाएगी. इनमें बड़ी संख्या में बंदी जयपुर सेंट्रल जेल के भी हैं.

बता दें सुप्रीम कोर्ट ने कोविड-19 मामलों में तेजी से बढ़ोतरी होते देख कैदियों को रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने उन कैदियों को रिहा करने के लिए कहा है जिनकी जमानत पिछले साल मार्च में मंजूर की गई थी. ऐसा करने के पीछे कोर्ट का मकसद महामारी के बीच जेलों में कैदियों की संख्या कम करने का है. सुप्रीम कोर्ट  ने निर्देश दिया है कि जिन कैदियों को पिछले साल पैरोल पर रिहा किया गया था, उन्हें फिर से 90 दिन का पैरोल दी जानी चाहिए. इससे इस वैश्विक महामारी से निपटने में मदद मिलेगी. इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा है कि अधिकारी उन मामलों में बिना सोच-विचार किए लोगों को गिरफ्तार न करें, जिनमें 7 साल तक के कारावास की सजा हो सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा कि, 'हम निर्देश देते हैं कि जिन कैदियों को हमारे पूर्व के आदेशों पर पैरोल दी गई थी उन्हें भी महामारी पर लगाम लगाने की कोशिश के तहत फिर से 90 दिनों की अवधि के लिये पैरोल दी जाए.' एक फैसले का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने अधिकारियों से कहा कि उन मामलों में यांत्रिक रूप से गिरफ्तारी से बचें जिनमें अधिकतम सजा सात वर्ष की अ है. पीठ ने उच्चाधिकार प्राप्त समितियों को निर्देश दिया कि वे राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण के दिशानिर्देशों को अपनाते हुए नए कैदियों की रिहाई पर विचार करें.

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