राजस्थानः तीन दशक बाद घोड़ी पर निकली दलित की बारात, जमकर उमड़ी भीड़

Sumit Rajak, Last updated: Thu, 10th Feb 2022, 12:50 PM IST
  • फूलों की बौछार के बीच घोड़ी पर सवार 24 वर्षीय दूल्हे मनोज बैरवा के चेहरे पर मुस्कान थी, हों भी क्यों न 30 साल बाद पहली बार उसक समुदाय के लोगों की बारात गांव से घोड़ी पर सवार होकर निकल रही थी. दरअसल, बुधवार को ऑपरेशन समानता के तहत राजस्थान में बूंदी जिला के नीम का खेड़ा गांव की संकरी गलियों में शान-ओ-शौकत के साथ दलित की बारात निकली.
फाइल फोटो

जयपुर. राजस्थान के बूंदी जिला में फूलों की बौछार के बीच घोड़ी पर सवार 24 वर्षीय दूल्हे मनोज बैरवा के चेहरे पर मुस्कान थी, हों भी क्यों न 30 साल बाद पहली बार उसक समुदाय के लोगों की बारात गांव से घोड़ी पर सवार होकर निकल रही थी. दरअसल,  बुधवार को ऑपरेशन समानता के तहत राजस्थान में बूंदी जिला के नीम का खेड़ा गांव की संकरी गलियों में शान-ओ-शौकत के साथ दलित की बारात निकली. इस बारात ने सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए कुरीतियों का अंत किया, जिसमें दलित वर्ग के दूल्हों को अपने विवाह समारोह में घोड़ी पर चढ़ने की अनुमति नहीं थी.

बता दें कि 30 साल पहले मनोज बैरवा के चाचा से उसी गांव में ऊंची जाति के पुरुषों ने इसलिए मारपीट की थी क्योंकि वह अनुसूचित जाति वर्ग से थे और उन्होंने अपनी शादी के दिन घोड़ी की सवारी करने की हिम्मत दिखाई थी. अधिकारियों ने बताया कि शादी एक पखवाड़े पहले जिले में शुरू किए गए 'ऑपरेशन समानता' के तहत आयोजित की गई थी, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय के बीच विश्वास पैदा करना. साथ ही उच्च जाति बहुल गांवों में शादी में दलित वर्ग के दूल्हों को घोड़ी चढ़ने की अनुमति नहीं देने जैसी कुरीतियों को खत्म करना था.

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उन्होंने कहा कि पहल के तहत जिले में अब तक 15 विवाह समारोह हो चुके हैं. साथ ही इस कदम का सवर्ण समुदाय ने स्वागत किया है. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले बैरवा ने कहा कि वह शादी में घोड़ी पर चढ़ने के लिए उत्साहित थे और ग्रामीणों ने उन्हें माला पहनाई और मिठाई के साथ बधाई दी.

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