भ्रष्टाचार के आरोप में अरेस्ट अफसरों को जेल से छूटने के बाद भी मिल रहा प्रमोशन, नहीं हुई संपत्ति जब्त
- राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने 2012 में भ्रष्ट अधिकारियों के लिए संपत्ति जब्त करने का कानून तो बनाया था, लेकिन इस कानून से अभी तक किसी भी भष्ट अधिकारी की संपत्ति जब्त नहीं हुई है. वही ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि जेल से छूटने के बाद अधिकारियों को प्रमोशन भी मिल जाता है.
जयपुर. राजस्थान में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो(ACB) राज्य के आईएएस, पीसीएस, आईआरएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई करती है. राजस्थान की गहलोत सरकार ने 2012 में भ्रष्ट अधिकारियों की संपत्ति जब्त करने का कानून भी बनाया था इसमें अफसरों को सजा तो होती है लेकिन कभी भी भष्ट अधिकारियों की संपत्ति जब्त नहीं हो पाती. एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में सरकार के पास 270 अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज है. सरकार ने कानून तो बनाया है लेकिन पिछले 9 सालों में संपत्ति जब्त करना तो दूर समय पर भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी भी नहीं दी है.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार के 40 प्रतिशत मामलों में एंटी करप्शन ब्यूरो आरोपियों को सजा दिला पाती है. समय पर मुकदमें की मंजूरी नहीं मिलने से एसीबी द्वारा पकड़े गए 60 प्रतिशत भ्रष्टाचार आरोपी अफसर छूट जाते है. भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड अफसर और कर्मचारियों की बहाली के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी हुई है. यह कमेटी हर तीन महीने में रिव्यू करती है. आमतौर पर देखा जाता है कि किसी भी आरोप में सस्पेंड कर्मचारी या अफसरों को 6 महीने में बहाल कर दिया जाती है. साथ ही उन्हें प्रमोशन भी दे दिया जाता है.
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ये अफसर भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़े गए
आईएएस निर्मला मीणा को भ्रष्टाचार के आरोप में पकड़ा गया था लेकिन 8 अगस्त 2019 को सरकार ने बहाल करके 30 सितंबर 2019 को इंदिरा गांधी पंचायती राज संस्थान के डायरेक्टर के पद पर पोस्टिंग दे दी. यह संस्था पंचायतीराज जनप्रतिनिधियों को बेहतर गवर्नेंस की ट्रेनिंग देता है. आईएएस नीरज के पवन को 2016 में नेशनल हेल्थ मिशन घोटाले में जेल भेजा गया. नीरज 17 मई 2016 से अप्रैल 2018 तक करीब 2 सालों तक जेल में रहे. जेल से बाहर आते ही सरकार ने उन्हें प्रशासनिक सुधार विभाग में संयुक्त सचिव बनाया.
एसीबी क्यो नहीं कर पाती कार्रवाई
एंटी करप्शन ब्यूरो की जांच में खामियां पाए जाती है. सरकार समय पर अभियोजन स्वीकृति नहीं दी थी. इस वजह से केस कमजोर हो जाता है. भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार लोगों को जेल से छूटने के बाद पोस्ट मिल जाती है. इससे मुकदमा चलाना मंजूरी मिलना और भी मुश्किल हो जाता है.
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