Putrada Ekadashi 2022: गुरुवार को पुत्रदा एकादशी पर जरूर पढ़े ये कथा, मिलेगा संतान सुख

Pallawi Kumari, Last updated: Wed, 12th Jan 2022, 3:21 PM IST
  • गुरुवार 13 जनवरी को पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. संतान कामना पूर्ति और संतान को सभी संकटों से भी बचाने के लिए इस व्रत को किया जाता है. पुत्रदा एकादशी के दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. साथ ही इस दिन पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ना या सुनना जरूरी होता है. 
पुत्रदा एकदाशी व्रत कथा

पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाता है. गुरुवार 13 जनवरी को साल की पहली एकादशी का व्रत रखा जाएगा. सभी व्रतों में एकादशी व्रत का काफी महत्व होता है और सभी एकादशी व्रतों में पुत्रदा एकादशी व्रत श्रेष्ठ माना जाता है. संतान कामनापूर्ति के लिए अगर निसंतान दंपति इस व्रत को करते हैं तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है. साथ ही संतान को सभी संकटों से भी बचाने के लिए भी पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाता है. वैसे तो साल में दो बार पुत्रदा एकादशी व्रत होता है. एक सावन मास में और दूसरी पौष मास में.

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय में भद्रावती राज्य का राजा सुकेतुमान था. उसका विवाह शैव्या नाम की राजकुमारी से हुआ. राजा सुकेतुमान के राज्य में हर तरह की सुख, सुविधा और वैभव था. उसकी प्रजा भी राजा से काफी खुश थी. लेकिन विवाह के कई साल बीत जाने के बाद भी सुकेतुमान को संतान सुख नहीं मिला. इस कारण से पति और पत्नी काफी चिंतित रहते थे.

राजा सुकेतुमान को इस बात की चिंता थी कि अगर संतान न हुआ तो फिर उनका पिंडदान कौन करेगा. इन चिंताओं से राजा का सुख संपत्ति और राजपाट से मन उचट गया. एक दिन वह जंगल ओर प्रस्थान कर गया.

इस दिन है पुत्रदा एकादशी, पुत्र प्राप्ति के लिए दंपति जरूर रखें ये व्रत

चलते चलते राजा एक तालाब के ​किनारे पहुंच गया. वह दुखी मन से वहीं बैठा गया. तभी उसे कुछ दूरी पर एक आश्रम​ दिखाई दिया. वह उस आश्रम में गया. वहां उसने सभी ऋषियों को प्रणाम किया. तब ऋषियों ने उससे इस वन में आने का कारण पूछा. राजा ने अपने दुख का कारण बताया. ऋषियों ने ही राजा सुकेतुमान से कहा कि संतान प्राप्ति के लिए उनको पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक रखना होगा. ऋषि ने पुत्रदा एकादशी व्रत की महिमा और महत्व के बारे में राजा को बताया.

राजा आश्रम से वापस अपने महल लौट गाय. पुत्रदा एकादशी का व्रत पड़ाने पर राजा और उसकी पत्नी ने इस व्रत को रखा और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा की. पुत्रदा एकादशी के व्रत नियमों का पालन किया. इसके फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं और फिर राजा को एक सुंदर पुत्र प्राप्त हुआ. इसलिए जो भी पुत्रदा एकादशी का व्रत रखता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है.

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