GSVM में 5 घंटे की लंबी सर्जरी के बाद डेढ़ साल की अमायरा को मिली नई जिंदगी
- सुजातगंज की डेढ़ साल की अमायरा पैर और पीठ के असहनीय दर्द से परेशान थी. जिसे जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के न्यूरो हेड डॉ. मनीष सिंह के अगुवाई में दिल्ली से आई डॉ. दीपशिखा और बाकी डॉक्टरों के टीम ने नर्व मॉनिटरिंग सिस्टम के मदद से पांच घंटे की लंबी ऑपरेशन के बाद अमायरा को एक नई जिंदगी दी.

कानपुर: डेढ़ साल की सुजातगंज की अमायरा लॉकडॉन से ही पैरों और पीठ की असहनीय दर्द और यूरीन की तकलीफों से जूझती रही. अमायरा को उसके माता पिता ने एसजीपीजीआई इलाज़ के लिए ले के गए. लेकिन कोविड प्रोटोकॉल के कारण उन्हें वहां से निराशा मिली. उसके बाद अमायरा को जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवाया गया. जहां न्यूरो सर्जन ने बुधवार को पांच घंटे के ऑपरेशन के बाद अमायरा को एक नई जिंदगी दी.
अमायरा को जन्मजात लाइपो मिलोमेन्निगो सील नामक बीमारी ने घेर लिया था. इस बिमारी में बच्चों की रीढ़ की हड्डी में झिल्लीनुमा आवरण बन जाती है. जिससे कोशिकाओं के दबने के कारण बच्चों का विकास रुक जाता है. जिससे हमेशा के लिए लकवा होने का खतरा बन जाता है.
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यह ऑपरेशन न्यूरो सर्जरी के हेड डॉ. मनीष सिंह के अगुवाई में दिल्ली से आई विशेषज्ञ डॉ. दीपशिखा ने पहली बार नर्व मॉनिटरिंग सिस्टम का प्रयोग किया. यह नई तकनीक का मशीन हाल में ही मेडिकल कॉलेज को मिला है. इस मशीन की खासियत यह है कि न्यूरो सर्जरी के दौरान किसी अनजान नर्व को नुकसान होने या कट जाने से बचा जा सकता है. ऑपरेशन के बाद अमायरा पूरी तरह सुरक्षित अपने माता पिता के साथ है.
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डॉ. सिंह ने इस बिमारी के बारे में बात करतें हुए बताया कि गर्भावस्था के तीसरे सप्ताह में कोशिकाओं की एक शीट यानि तंत्रिका प्लेट एक ट्यूब बनाती है, जिसे न्यूरल ट्यूब कहा जाता है. जिसका शीर्ष भाग मस्तिष्क बनता है और बाकी का भाग रीढ़ की हड्डी बन जाती है. ये बिमारी तब होती है जब इस तंत्रिका ट्यूब के बंद होने में कोई परेशानी आती है. और कोशिका की एक झिल्ली रीढ़ की हड्डी में एक जगह बन जाती है. यही आवरण शरीर के हर सिस्टम को रोकने लगता है. इसके कारण ही दर्द, यूरीन नली में संक्रमण, विकास और न्यूरोमस्कुलर स्कोलियोसिस को लगातर परेशानी देती है.
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