IIT कानपुर रिसर्च- जल्द हरियाणा जैसे होंगे यूपी के हाल, जमीनी जलस्तर गिरना भयावह

Smart News Team, Last updated: Sun, 23rd Aug 2020, 11:03 AM IST
  • आईआईटी कानपुर की रिसर्च में यह सामने आया है कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भी हरियाणा जैसे पानी की समस्या पैदा हो सकती है. इससे संबंधित रिसर्च का प्रकाशन नेचुरल इरीगेशन रिपोर्ट में किया गया है।
IIT  कानपुर के अनुसार उत्तर प्रदेश और बिहार में पानी और मिट्टी की स्थिति खराब हो सकती है

कानपुर. उत्तर प्रदेश और बिहार में भी हरियाणा जैसी जल दोहन की समस्या पैदा हो सकती है. आईआईटी कानपुर ने यह चेतावनी दी है. इसके साथ ही आईआईटी कानपुर ने यह भी कहा कि यहां पानी के स्तर गिरने के साथ ही मिट्टी की हालत भी खराब हो सकती है. इससे यहां आने वाले समय में फसलों के लिए खतरा पैदा हो सकता है. दरअसल, आईआईटी कानपुर, आईआईटी दिल्ली, बीएचयू और राष्ट्रीय भौतिकी अनुसंधान संस्थान,डरहम की संयुक्त रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है.

इन संस्थानों ने उत्तर- पश्चिमी भारत में भू-जल संकट पर अध्ययन किया था. इस अध्ययन का प्रकाशन 'नेचुरल इरिगेशन रिपोर्ट' में प्रकाशित किया गया है। इस प्रकाशन में इस ओर क्या सुधार किए जाने चाहिए, इसके लिए सुझाव भी दिए हैं.

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इसके अलावा इस अध्ययन में जो निष्कर्ष सामने आए हैं, उसके अनुसार गंगा के मैदानी भागों के अधिकांश हिस्सों में इसका अधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है. आईआईटी कानपुर के इस पत्र के सह-लेखक प्रोफेसर राजीव सिन्हा का कहना है कि यूपी और बिहार के कई हिस्सों में भी भूजल का निरंतर दोहन किया जा रहा है, इससे यहां भी हरियाणा पंजाब जैसे हालात पैदा हो सकते हैं. इसके अलावा जहां भूजल के स्तर में गिरावट देखने को मिल सकती है. इसके साथ ही मिट्टी की लवणता की गंभीर समस्या और कृषि के उत्पादन में भी नुकसान हो सकता है.

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प्रोफेसर सिन्हा का कहना है कि वे बुंदेलखंड सहित यूपी के कई हिस्सों में काम कर रहे हैं. यदि यहां भी प्रबंधन की योजनाओं को लागू नहीं किया गया तो इससे गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है. प्रोफेसर सिन्हा के मुताबिक भूजल के अंधाधुंध उपयोग ने बहुत ही विकट समस्या पैदा कर दी है. भूजल का स्तर भी लगातार गहराता जा रहा है और यह वर्तमान वर्षा से पर्याप्त रिचार्ज भी नहीं हो पा रहा है.इस स्थिति में सबसे महत्वपूर्ण है कि मौजूदा परिस्थितियों का आकलन किया जाए. इसके अतिरिक्त सिमुलेशन अध्ययन के जरिये भूजल स्तर के भविष्य के रुझानों की भविष्यवाणी की जाए ताकि भविष्य के लिए कोई स्थाई रणनीति तैयार की जा सके.

 

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