कानपुर में इस बार नहीं सुनाई देगा मोहर्रम पर पैकियों के लश्कर-ए-हुसैनी का शोर
- यूुपी के कानपुर में इस बार कोरोना के चलते 250 पुराने मोहर्रम पर हुसैनी का शोर सुनने को नहीं मिलेगी. न ही हुसैनी लशकर निशान लेकर उड़ेगा ना ही लाखों पैकियों की भीड़ जुटेगी.

कानपुर की 250 साल पुररानी पहचान मोहर्रम में पैकी इस बार लोगों को देखने को नहीं मिलेगी. कोरोना महामारी के चलते इस बार हर साल की तरह पैकी नहीं बनेंगे. इनकी सिर्फ डोरी और कलावे से कमर बंधाई होगी.
पैकियों के कमर में बंधीं घंटियों की आवाजें भी सुनाई नहीं देंगी. हुसैनी लश्कर निशान भी लेकर नहीं उड़ेगा. जिसके चलते भीड़ भी नहीं होगी. दरअसल मोहर्रम की पांच तारीख से शहर में पैकियों के बनने का सिलसिला शुरू हो जाता है. यह काम खलीफा करते हैं. इस बार पैकियों की कमर बंधाई तो होगी लेकिन सिर्फ कलावा बांधेंगे. घंटियां नहीं बांधेंगे. स्थानीय स्तर पर गश्त भी नहीं होगी.मोहर्रम की 9 तारीख को बड़ी कर्बला में सामूहिक कूच भी नहीं करेंगे.
नगर क्षेत्र में खलीफा शकील अहमद खान और रेल बाजार में खलीफा अच्छे मियां यह काम करते रहे हैं. इसी दिन निशान को गुलजार किया जाता है.शाम के समय खलीफा निशान लेकर उड़ते (दौड़ते) हैं. इसके साथ ही पैकियों की गश्त का सिलसिला शुरू हो जाता है. फिर नौ मोहर्रम तक पैकी लोगों के घरों में नजर-फातेहा आदि के लिए बुलावे पर जाते हैं.
खलीफा अच्छे मियां ने बताया कि इस बार कोरोना महामारी के चलते किसी को समूह में जाने का अधिकार नहीं होगा. किसी भी दिन कोई गश्त नहीं होगी. यहीं निशान रखा जाएगा जिसकी जियारत कर सकेंगे. उन्होंने बताया कि यदि कोई व्यक्तिगत स्तर पर गश्त करता है या नियमों को तोड़ता है तो उसके खिलाफ पुलिस एक्शन ले सकती है.इसकी कोई जिम्मेदारी तंजीम की नहीं होगी.
वहीं खलीफा शकील अहमद ने भी कहा है कि इस बार नौ मोहर्रम को पैकियों का कोई कूच नहीं होगा. धार्मिक औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी लेकिन इसमें भी भीड़ नहीं लगने दी जाएगी।
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