Diwali 2021: क्या आपको पता है दिवाली का प्राचीन नाम, जानें पृथ्वी पर पहली बार कहां मनाया गया था दीपोत्सव
- दीपोत्सव यानी दीपावली पर्व दीपोत्सव यानी दीपावली पर्व आज 4 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है. दिवाली को लेकर कई मान्यताएं और कथाएं हैं. आज दिवाली के दिन आपको बताते हैं कि प्राचीन काल में इसे किस नाम से जाना जाता था और सबसे पहली बार कहां दिवाली मनाई गई थी.

हर साल कार्तिक माल की अमावस्या तिथि को प्रकाश पर्व दिवाली मनाई जाती है. दिवाली का त्योहार प्राचीनकाल से ही मनाया जा रहा है. हालांकि बदलते समय के समय दिवाली मनाने के तरीके में भी बदलाव आए. लेकिन हर साल देशभर में इस उतनी ही उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस दिन माता लक्ष्मी और गणेश की विधि विधान के साथ खास पूजा की जाती है. आज दिवाली के मौके पर जानते हैं कि पृथ्वी पर पहली बार कब और कैसे दिवाली मनाई गई थी और प्राचीनकाल से मनाई जाने वाली दिवाली का प्राचीन नाम क्या है.
क्या है दिवाली का प्राचीन नाम-
दीपावली शब्द 'दीप' यानी दीपक और 'आवली' पंक्ति से मिलकर बना है. इसका अर्थ होता है 'दीपों की पंक्ति'. अर्थात् दीपा की माला। ने वाला पर्व है. इसका वैदिक प्रार्थना है- 'तमसो मा ज्योतिर्गमय:' मतलब अंधकार से प्रकाश में ले जाने वाला पर्व. प्राचीनकाल में इसे दीपोत्सव के नाम से जाना जाता था, जिसका अर्थ है दीपों का उत्सव. हालांकि आज भी लोग दीपोत्सव के रूप में दिवाली को जानते हैं. लेकिन आम बोलचाल की भाषा में ज्यादातर दिवाली या दीपावली का प्रयोग किया जाता है.
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पहली बार कहां मनाई गई दीपावली- दीपावली को कब और कैसे मनाने को लेकर लोगों के बीच अलग अलग दावे किए जाते हैं. इसे लेकर अलग अलग कथा और मान्यताएं हैं. लेकिन कहा जाता है कि पहली बार दिवाली किसान के घर पर मनाई गई थी. हिंदू मान्यता के अनुसार एक ऐसी कथा है कि, समुद्र मंथन के बाद पृथ्वी भ्रमण के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु बैकुंठ चले गए. देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर मौजूद खेत खूब पसंद आए. उन्होंने खेत के सरसों के पीले फूल से अपना श्रंगार किया और गन्ना खा लिया. भगवान विष्णु जब लौटे तो वह निश्चित जगह की बजाय किसान के खेत में भ्रमण करते मिलीं. नाराज भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से कहा कि आपने चोरी करके किसान की फसल खाई आपको इसका दंड मिलेगा और दंड स्वरूप कुछ समय के लिए आप इस किसान के घर पर रुकना पड़ेगा और समय खत्म होने पर आकर मैं तुम्हें ले जाउंगा.
समय बीतने के जब विष्णु जी माता लक्ष्मी को वापस लेने आए तो किसान के घरवाले लक्ष्मी जी से वहीं रुकने की प्रार्थना करने लगे. तब देवी लक्ष्मी ने आश्वासन दिया कि वह किसान के घर में एक कलश में मौजूद रहेंगी और उस कलश की रोज पूजा करनी होगी. देवी ने कहा कि वह प्रतिवर्ष इसी दिन यानी कार्तिक अमावस्या को उसके घर पधारेंगी. अगले वर्ष कार्तिक अमावस्या को किसान ने देवी लक्ष्मी के आगमन पर घर को खूब सजाया और दीपों से धरती को रोशन कर दिया. कहा जाता है कि इसी दिन से पृथ्वी पर दीपोत्सव के रूप में दीपावली मनाई जाने लगी. इसलिए लोग हर साल इस दिन लक्ष्मी पूजन करते हैं मां के आगमन की तैयारी करते हैं.
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