Putrada Ekadashi: पुत्रदा एकादशी पर बन रहा आज खास योग, जानें व्रत, पूजा और पारण का समय

Pallawi Kumari, Last updated: Thu, 13th Jan 2022, 8:48 AM IST
  • संतान सुख की प्राप्ति और संतान को सभी संकटो से बचाने के लिए आज पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा. सभी एकादशी में पौष पुत्रदा एकदाशी का विशेष महत्व होता है. इस दिन भगवान विष्णु की खास पूजा की जाती है. आइये जानते हैं आज कैसे करें पुत्रदा एकादशी पूजा, क्या है मुहूर्त और पारण का समय.
पौष पुत्रदा एकादशी

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व होता है. गुरुवार 13 जनवरी पौष मास की शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को आज पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगी. कई जगह इसे पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में एकादशी व्रत का काफी महत्व है. वहीं सभी एकादशी में पुत्रदा एकादशी को श्रेष्ठ माना जाता है. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट होता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की कृपा से दंपति को संतान की प्राप्ति होती है. वहीं संतान से स्वस्थ और निरोगी जीवन के लिए भी इस व्रत को किया जाता है.

पुत्रदा एकदाशी पूजा विधि- सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें. इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विधि-विधान से उनकी पूजा करें. घर के मंदिर में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें. इसके बाद गंगाजल से शुद्धि करें. पूजा में तुलसी को जरूर शामिल करें. भगवान विष्णु के साथ इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.  पुत्रदा एकादशी व्रत कथा पढ़ें और अंत में आरती करें.इस दिन व्रत भी रखें और अगले दिन सुबह व्रत का पारण करें.

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पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त व पारण का समय-

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत- 13 जनवरी 2022, गुरुवार

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 12 जनवरी 2022 शाम 04:49 बजे

एकादशी तिथि समाप्त - 13 जनवरी 2022 शाम 07:32 बजे

पारण का समय- 14 जनवरी 2022, शुक्रवार, सुबह 07 बजकर 15 मिनट से 09 बजकर 21 मिनट तक

पारण तिथि समाप्त- 14 जनवरी, रात 10 बजकर 19 मिनट तक

पुत्रदा एकादशी महत्व- पुत्रदा एकादशी के दिन पूजा और व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है. संतान पर पड़ने वाली सभी संकटों से रक्षा के लिए ये भी ये व्रत किया जाता है. पुत्रदा एकादशी की कथानुसार ऋषियों ने इस व्रत के बारे में राजा सुकेतुमान को बताया था, जिसके बाद उन्होंने इस व्रत को किया और उन्हें एक सुंदर स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई.

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