लखनऊ की इस तहसील में हक के लिए भटक रहा भूत, रोज दे रहा सरकारी दफ्तरों में हाजिरी
- उत्तर प्रदेश में कई ऐसे मृत घूम रहे हैं जिनकी जमीन झूठे दस्तावेज देकर हड़प ली गई है और वह मृत घोषित खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. वाराणसी में पिछले 23 सालों से राजस्व के कागजों में खुद को जिंदा साबित करने के लिए चौबेपुर के संतोष सिंह लड़ाई लड़ रहे हैं.

लखनऊ. ज्ञान प्रकाश. यूपी की राजधानी में ऐसा मामला सामने आया जिसमें सरकारी दस्तावेजों के अनुसार मोहनलालगंज तहसील के गुलालखेड़ा के राजेश साल 2013 में मर चुके हैं और उनकी एक बीघा जमीन किसी दूसरे के नाम कर दी गई. वहीं अब राजेश खुद को जिंदा साबित करने के लिए तहसील के चक्कर लगा रहे हैं.
लखनऊ के राजेश ऐसे अकेले व्यक्ति नहीं हैं उन्हीं की तरह हाथरस से लेकर मऊ, गोरखपुर से कौशांबी तक प्रदेश में कई ऐसे जिंदा भूत हैं जो अपने हक की मांग कर रहे हैं. भूत उन्हें इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कागजों में उन्हें मृत दिखा घोषित कर दिया गया है. बता दें कि राजेश अपनी बहन के साथ बचपन में ही कानपुर चले गए थे और काफी समय तक वहां दुकान लगाकर ही गुजारा कर रहे थे. जब वह गांव लौटे तो पता तला कि उनकी जमीन किसी दूसरे के नाम लिखी गई है. उनका जाली मृत्युप्रमाणपत्र बनाकर जमा कर दिया गया है. राजेश अब लेखपाल से लेकर एसडीएम तक गुहार लगा रहे हैं. कई बार अफसर सिर्फ दिलासा देकर भेज देते हैं लेकिन हर बार उनके मामले की जांच ठंडे बस्ते में चली जाती है.
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कानपुर में पिछले साल मार्च में एक व्यक्ति को मृत घोषित करके जमीन पर कब्जे का मामला सामने आया था. इस मामले में बार एसोसिएशन की चिठ्ठी पर जांच के बाद खुलासा हुआ था. नौरंगा सिकल के कैथा गांव के रहने वाले अमरनाथ सचान, सिया देवी और राज देवी को राजस्व अभिलेखों में मृत दिखाया गया था और इनकी जमीन को महेंद्र के पुत्र अंगू के नाम कर दी गई थी.
धोखाधड़ी करने वालों ने बचने के लिए अलग-अलग पता लिखवाया था जिससे उनतक कोई पहुंच ना सके. तहसीलदार ने जब इस मामले की जांच कराई तो सामने आया कि अभिलेखों में राजस्व निरीक्षक के हस्ताक्षर मिले हैं. जिसके बाद तहसीलदार विजय यादव ने सभी मृत दिखाकर जमीन अपने नाम करने वाले वरासतों को रद्द कर दिया था.
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महिलाबाद के रानीखेड़ा जिंदौर के निवासी संत लाल की जमीन पर कब्जे के लिए मृतक की गवाही करा दी गई. उनके पिता जिनकी तीन साल पहले मौत हो गई थी उनके हस्ताक्षर और अंगूठे के निशान कागजों पर लगा दिए गए थे. कोर्ट ने जब मुकदमा दर्ज करने के लिए कहा तब इस मामले का खुलासा हुआ था.
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उत्तर प्रदेश ऐसे मामलों की संख्या 50 हजार से ज्यादा है. सर्वे कराया जाए तो देशभर में लाखों मामले सामने आ जाएंगे. कई मृत घोषित हो चुके लोगों को दोबारा जीवित भी किया गया है. साल 2008 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य सरकार ने सरकारी अभिलेखों में मृत घोषित 535 लोगों के नाम दोबारा दर्ज किए हैं.
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लाल बिहारी के अनुसार उस समय मृत घोषित जीवित का मामला अंतराष्ट्रीय स्तर पर उठा था जिसके बाद देश भर में इसकी चर्चा हो रही थी. कृष्ण कन्हैया पाल जीवित मृतकों के वकील हैं. उन्होनें इस पर बताया कि सुप्रीम कोर्ट से 2004 में अपील की गई थी जिसके बाद शीर्ष कोर्ट ने इस मामले को मनवाधिकार आयोग को भेज दिया था.
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