लखनऊ के स्मारकों की बदहाल स्थिति, जानें क्यों नहीं हो रहा है रखरखाव
- लखनऊ में मायावती के कार्यकाल में बने स्मारकों और पार्कों की हालत अब खस्ता होती जा रही है, रखरखाव के अभाव में इनकी स्मारकों की बदहाली अब साफ-साफ देखी जा सकती है.

लखनऊ: लखनऊ में सन 2007 से 2011 के बीच में बने स्मारकों और पार्कों की हालत अब खस्ता होती जा रही है, रखरखाव के अभाव में इनकी स्मारकों की बदहाली अब साफ-साफ देखी जा सकती है. स्मारकों की देखभाल के लिए कुल 5700 कर्मचारी नियुक्त किए गए थे जो अब घटकर 5200 पर पहुंच गई है. 500 कर्मचारियों की कहीं और नियुक्ति होने से उन्होंने काम छोड़ दिया जिसके बाद उन रिक्त पदों पर भर्ती नहीं हुई. आश्चर्य की बात ये है की कर्मचारियों की इतनी संख्या होने के बाद भी पार्कों का रखरखाव नहीं हो रहा है. कर्मचारी ज्यादातर समय खाली बैठे रहते हैं. क्योंकि इनके पास काम करने के लिए जरूरी उपकरण ही नहीं है. मेंटेनेंस भी इसलिए नहीं करा पा रहे हैं क्योंकि फाइलें ही नहीं स्वीकृत होती. एलडीए उपाध्यक्ष व सचिव को निरीक्षण में शुक्रवार को इसीलिए स्मारक बदहाल मिले थे. जिसके लिए उन्होंने स्मारकों के कुछ कर्मचारियों अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी की है.
हिंदुस्तान ने पड़ताल किया तो पता चला की जो कर्मचारी अधिकारी काम करना चाहते हैं वह भी नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि उन्हें जरूरी सामान ही नहीं मिल पा रहा है. झाड़ू, पोछा, फ़ावड़ा, तलवार, सिंचाई के लिए पानी मशीनें, गैती, बेलचा आदि नहीं मिलता है. जिसकी वजह से वह बैठे रहते हैं. बहुत हो हल्ला मचने पर थोड़ा बहुत सामान जेम पोर्टल से खरीद कर दे दिया जाता है. जिससे कुछ काम होता जिससे की पार्कों में स्थिति आने जाने के लायक है.
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डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, कांशी राम स्मारक, कांशीराम इको ग्रीन गार्डन, बौद्ध विहार शांति उपवन, रमाबाई रैली स्थल, स्मृति उपवन, अंबेडकर गोमती पार्क, अंबेडकर बाह्य क्षेत्र के मेंटेनेंस की जिम्मेदारी प्रबंधक अनुरक्षण हिमांशु रंजीत सिंह के पास है. लेकिन वह ध्यान नहीं देते हैं. इससे स्मारकों में जगह-जगह पत्थर टूटे हुए हैं. कई स्मारकों के प्रबंधकों ने बताया कि मेंटेनेंस के लिए जो फाइलें वह अनुरक्षण विभाग भेजते हैं उनमें अनावश्यक आपत्तियां लगा दी जाती है. जिससे काम नहीं हो पा रहा है. इस मामले में हिमांशु से बात करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन नहीं उठाया.
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लेखा विभाग में स्थिति तो बदतर है, स्मारक समिति के लेखा विभाग में भी आसानी से काम स्वीकृत नहीं होते. यहां के अधिकारियों की भी मंशा साफ नहीं रहती. प्रबंधक वित्त देवेंद्र मणि उपाध्याय तथा उसके नीचे के अधिकारी तमाम आपत्तियां लगाकर फाइलें वापस कर देते हैं. जिसकी वजह से भी मेंटेनेंस व उपकरण खरीदने की पत्रावली स्वीकृत नहीं हो पाती है.
मेंटेनेंस के लिए स्मारक के खाते में 200 करोड़ रुपए से अधिक की रकम पड़ी है. लेकिन फाइलें न स्वीकृत होने की वजह से यह बदहाल हैं. मेंटेनेंस के लिए 165 करोड रुपए की एफडी कराई गई थी. इसके ब्याज से हर साल मेंटेनेंस का काम होना था. लेकिन काम न कराने से अब यह रकम 165 से बढ़कर 200 करोड़ के पार हो गयी है.
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