कोरोना वैक्सीन को लेकर अफवाहों से हैं परेशान, यहां जानें क्या है सच और झूठ
- कोविड वैक्सीन को लेकर कई अफवाहें सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही है. जिसमें सबसे ज्यादा इस झूठ को वायरल किया जा रहा है कि कोरोना वैक्सीन सुरक्षित नहीं है. वहीं जब लोग अपने से ठीक हो रहे हैं तो कोरोना टीका क्यों लगवाना चाहिए. एक्सपर्ट्स से मिला जवाब यहां पढ़ सकते हैं.

लखनऊ. कोरोना वैक्सीन को लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह की अफवाहें चल रही हैं. देशभर में टीकाकरण को लेकर कुछ सच हैं जो सभी के लिए जानने जरूरी हैं. वैक्सीन को लेकर सबसे ज्यादा ये बात कही जा रही है कि टीका हर किसी को लगवाने की जरूरत नहीं है. इसपर एक्सपर्ट्स का कहना है कि सोशल मीडिया पर टीकाकरण का विरोध करने वाले लोग मीम के जरिए लोगों को यह बताने की कोशिश की जा रही है कि टीका लगवाने से ज्यादा सुरक्षित तो संक्रमित होना है.
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ सांख्यकीविद् जेसन ओके का कहना है कि कोविड का रिकवरी रेट 99.97 प्रतिशत नहीं बल्कि लगभग 99 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि 10 हजार मरीजों में से 100 लोगों की मौत हो सकती है. वहीं मीम में ये आंकड़ा 10 हजार में से तीन की मौत को बताता है. सांख्यकीविद् का कहना है कि ये लोगों को भ्रम में डालने जैसा है. वह कहते हैं कि लोग ठीक हो रहे हैं पर उनमें कोरोना से जुड़े असर लंबे समय तक बने रहते हैं जो देश के स्वास्थ्य संसाधनों पर बोझ बन सकते हैं इसीलिए टीका लगाकर इस प्रभाव को रोका जाना चाहिए.
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कोरोना वैक्सीन को लेकर यह अफवाह फैलाई जा रही है कि इसके जरिए लोगों के शरीर में खास चिप लगाई जाएगी. इस पर एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये पूरी तरह से अफवाह है. यह अफवाह पिछले साल इंटरनेट पर फैलने शुरू हो गई थी जिसमें अफवाह फैलाने वालों ने माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स को भी घसीट लिया था. अफवाह के अनुसार यह था कि बिल गेट्स लोगों के शरीर में चिप लगवाने की योजना बना रहे हैं. अफवाह के कारण हालत इतने बिगड़े कि बिल गेट्स की पत्नी ने बयान देकर इसे फर्जी बताया था.
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फेसबुक पर संचालित होने वाले सबसे टीका विरोधी ग्रुप ने तथ्यहीन सूचना फैलाई कि वैक्सीन में इंसानी भ्रूण का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर साउथेम्पटन विश्वविद्यालय के डॉ. माइकल हेड ने बताया कि किसी भी वैक्सीन के उत्पादन में इंसानी भ्रूण की कोशिकाओं का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. हेड का कहना है कि यह अफवाह इसलिए फैलाई जा रही है क्योंकि वैक्सीन बनाने वाले लैब्स में विकसित की गई कोशिकाओं पर इन टीकों का सबसे पहले टेस्ट किया जाता है.
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कोरोना वैक्सीन को लेकर यह अफवाह भी फैलाई जा रही है कि कोरोना का टीका लगाने के बाद इंसान का डीएनए बदल सकता है. इसपर फाइजर बायोएनटेक और मॉडर्ना द्वारा बनाए गए कोरोना के टीकों में वायरस के अनुवांशिक तत्वों के अंश यानी मैसेंजर आरएनए का इस्तेमाल किया गया है. इस आधार पर अफवाह फैलाई जा रही है कि वायरस के अनुवांशिक तत्व, इंसानों के अनुवांशिक तत्वों या डीएनए को बदल देंगे.
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इसपर ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जेफरी आलमंड ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में आरएनए को प्रवेश कराने से उनकी मानव कोशिकाओं के डीएनए पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं पड़ेगा. यह आरएनए इंसानी कोशिकाओं में ऐसा प्रोटीन पैदा करता है जो कोरोना की सतह पर मौजूद है. इस तरह शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली उस प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडीज को पहचानना और उसका उत्पादन करना सीखती हैं.
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