बैकुंठ धाम में बना हरित शवदाह गृह, ईको फ्रेंडली तकनीक से सुरक्षित होगा पर्यावरण

Smart News Team, Last updated: Sun, 9th May 2021, 2:04 PM IST
  • लखनऊ के बैकुंठ धाम में नई तकनीकी वाला हरित शवदाह गृह बनाया गया है जिसमे शव को जलाने के लिए लकड़ी की बहुत ही कम खपत होगी. भट्ठी की तहर चलने वाले इस शवदाह में केवल एक कुंतल लकड़ी में दाह संस्कार पूरा हो जाएगा.
बैकुंठ धाम में बना हरित शवदाह गृह, ईको फ्रेंडली तकनीक से सुरक्षित होगा पर्यावरण

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कोरोना से संक्रमित होने और मरने वालों की संख्या अभी भी भयावह है. केवल अप्रैल महीने में ही लखनऊ में तकरीबन 3500 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है. शव जलाने के लिए लकड़ी भी कम पड़ रही है. लकड़ी से होने वाले धुएं के कारण प्रदूषण का खतरा भी बना हुआ है. इसी के चलते लखनऊ के बैकुंठ धाम में नई तकनीकी वाला हरित शवदाह गृह बनाया गया है जिसमे शव को जलाने के लिए लकड़ी की बहुत ही कम खपत होगी. भट्ठी की तहर चलने वाले इस शवदाह में केवल एक कुंतल लकड़ी में दाह संस्कार पूरा हो जाएगा. इससे लगभग 85 प्रतिशत लकड़ी की बचत के साथ साथ पर्यावरण के नुकसान का कोई खतरा भी होगा, इसके साथ ही शव के अंतिम संस्कार में समय भी बहुत कम लगेगा.

इस तकनीक की मदद से प्रयोग के तौर पर लखनऊ के गुलाला घाट पर हरित शवदाह तैयार किया गया था, जिसके अच्छे परिणाम सामने आने पर बैकुंठ धाम में भी एक शवदाह तैयार किया गया है. इस मशीन से महज 15 प्रतिशत यानी एक कुंतल से कम लकड़ी में शव पूरी तरह जल जा रहा है. यहां पर दो मशीनें लगाई गई हैं जिसमे से एक मशीन 54 हजार रूपए की लागत से तैयार की गई है. इन मशीनों से केवल कोरोना संक्रमित शवों का अंतिम संस्कार किया जाएगा.

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इस मशीन को भट्ठी की तरह बनाया गया है जिसमें चारों तरफ से लोहे की मोटी चादर का इस्तेमाल करके ग्रिल के साथ एक प्लेटफार्म बनाया गया है. उसी पर पहले लकड़ी और उसके ऊपर शव को रखा जाता है. सबसे नीचे एक प्लेट लगी होती है जिसमें शव के जलने पर राख जमा होगी. आग को तेज करने के लिए चूल्हे की फुंकनी की तरह एक हार्स पावर पम्प से हवा अंदर डाली जाएगी जो आग को तेज करेगी. इससे कम लकड़ी में शव का दाह संस्कार हो जाएगा. इसमें धुआं निकलने के लिए ऊंची चिमनी लगेगी जिससे वायु प्रदूषण नहीं होगा.

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नगर आयुक्त अजय कुमार द्विवेदी ने कहा कि बैकुंठ धाम व गुलाल घाट सहित तीन नए हरित शवदाह गृह को शुरू कर दिया गया है. यह नई तकनीकी के हैं. एक कुंतल से भी कम लकड़ी की खपत हो रही है. इससे लकड़ी की किल्लत दूर होने के साथ पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सकेगा.

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