लखनऊ नगर निगम की जेब खाली, चिता जलाने को कम पड़ी लकड़ी तो शासन से मांगी मदद

Smart News Team, Last updated: Wed, 28th Apr 2021, 5:23 PM IST
  • विद्युत शवदाह गृह या सीएनजी शवदाह गृह से पहले काम चल जाता था, लेकिन अत्यधिक मात्रा शवों के आने से शहर हो या गांव व्यवस्था चरमरा गई है. आलम ये है की अब शवों को जलाने के लिए लकड़ियां भी कम पड़ने लगीं हैं.
लखनऊ नगर निगम की जेब खाली, चिता जलाने को कम पड़ी लकड़ी तो शासन से मांगी मदद (फाइल फ़ोटो)

लखनऊ: कोरोना से बेहाल उत्तर प्रदेश में शवों को जलाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है. विद्युत शवदाह गृह या सीएनजी शवदाह गृह से पहले काम चल जाता था, लेकिन अत्यधिक मात्रा शवों के आने से शहर हो या गांव व्यवस्था चरमरा गई है. आलम ये है की अब शवों को जलाने के लिए लकड़ियां भी कम पड़ने लगीं हैं. राजधानी लखनऊ का आलम ये है की लकड़ी ठेकेदार इस जरूरत को पूरा नहीं कर पा रहे हैं. इसलिए अब दूसरे जिलों से लकड़ी मंगाई जा रही है. नगर निगम अब तक करीब नौ हजार क्विंटल लकड़ी वन के कई जिलों के प्रभाग से मंगा चुका है. यही नहीं अंतिम संस्कार का खर्च बढ़ने से नगर निगम के पास बजट की भी कमी हो गई है. इसलिए उसने शासन से 20 करोड़ रुपये की मदद भी मांगी है.

सामान्य दिनों के मुकाबले इन दिनों अंतिम संस्कार के लिए रोजाना 200 से 300 तक शव पहुंच रहे हैं. आम दिनों में यह संख्या रोजाना 20 से 30 तक रहती थी. जिनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह या सीएनजी वाले दाहगृह से काम चल जाता था. शहर के लकड़ी ठेकेदारों के हाथ खड़े कर देने से नगर निगम को वन निगम से लकड़ी मंगानी पड़ी. अब तक वन निगम के बहराइच, लखीमपुर खीरी, गोंडा, बलिया, अयोध्या और नजीबाबाद प्रभाग से करीब नौ हजार क्विंटल लकड़ी मंगाई जा चुकी है.

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नगर निगम पहले सामान्य या कोरोना से होने वाली मौतों को लकड़ी नहीं देता था. पहले अंतिम संस्कार कराने वाले पंडे ही लकड़ी बेचते थे. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में शवों की बढ़ी तादाद से लकड़ी की किल्लत हुई और विद्युत शवदाह गृह पर लाइन लगने लगी तो नगर निगम खुद लकड़ी का इंतजाम कराने लगा. विद्युत शवदाह गृह की तरह ही संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी, घी व अन्य सामग्री भी नगर निगम निशुल्क देता है. हालांकि, सामान्य शवों के लिए अंतिम संस्कार की व्यवस्था पूर्व की तरह ही है. इनके लिए पंडों से ही तय रेट पर लकड़ी खरीदी जा रही है.

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कितनी है लकड़ी का खपत

वर्तमान में बैकुंठधाम और गुलाला घाट पर रोजाना औसतन 200 से 300 तक शव लाए जा रहे हैं. इनमें करीब 50 फीसदी कोरोना संक्रमित होते हैं. संक्रमित शवों में 50 से 60 का ही अंतिम संस्कार दोनों घाटों पर बिजली से हो पाता है. शेष का लकड़ी से किया जा रहा है. ऐसे में करीब औसतन 200 शवों का अंतिम संस्कार लकड़ी से होता है. एक पर करीब साढ़े तीन क्विंटल के हिसाब से करीब 700 क्विंटल लकड़ी रोज खर्च हो रही है.

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नगर निगम ने सरकार से मांगा बजट

लखनऊ नगर आयुक्त अजय द्विवेदी ने बताया कि कोरोना संकट को देखते हुए नगर निगम से करीब पांच करोड़ रुपये बजट का प्रावधान किया था, लेकिन उससे काम नहीं चल सका. एक शव के अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी पर जितना खर्च है उतना ही खर्च कर्मचारी, पीपीई किट, सैनिटाइजेशन आदि पर होता है. संक्रमित शवों के अंतिम संस्कार पूरा काम नगर निगम के कर्मचारी ही करते हैं. इसके लिए अतिरिक्त कर्मचारी लगाने पड़े हैं. ऐसे में शासन से 20 करोड़ रुपये बजट की मांग की गई है.

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उप्र. वन निगम ने नगर निगम को ढाई हजार क्विंटल लकड़ी उपलब्ध कराई है. इसे नगर निगम की विशेष मांग पर दिया गया है, जिसका उपयोग श्मशान भूमि में किया जा रहा है. वन निगम के महाप्रबंधक (विपणन) शेष नारायण मिश्रा ने बताया कि लखनऊ नगर निगम ने हमसे लकड़ी की मांग की थी. उन्हें अभी तक 1000 घन मीटर लकड़ी उपलब्ध करा दी गई है.

 

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