विकास, रोजगार के बजाय जाति और धर्म की राजनीति में उलझ रहा यूपी विधानसभा चुनाव

MRITYUNJAY CHAUDHARY, Last updated: Fri, 14th Jan 2022, 11:19 AM IST
  • उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव धीरे धीरे विकास, रोजगार और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दों से हटकर जाति और धर्म आधारित राजनीति की तरफ बढ़ रहा है. एक तरफ जहां बीजेपी के मंत्री गरीब, दलित और वंचितों की उपेक्षा का आरोप लगा इस्तीफा दे रहे. तो दूसरी तरफ भाजपा अयोध्या और काशी समेत अन्य हिन्दू तीर्थस्थलों की विकास की बात कर वोट मांग रही है.
जाति और धर्म की राजनीति में उलझ रहा है यूपी का चुनाव

लखनऊ (वार्ता). उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 विकास, रोजगार और कानून व्यवस्था जैसे ज्वलंत मुद्दों के बजाय  जाति और धर्म आधारित की राजनीत पर केन्द्रित होता दिख रहा है. इसकी बानगी एक ओर वे मंत्री और विधायक हैं जो पांच साल तक सत्ता सुख भोग कर समाजवादी पार्टी की ओर रूख करते हुये गरीब, दलित और वंचितों के उत्पीड़न एवं उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं. वहीं, सत्तारूढ़ भाजपा अयोध्या और काशी समेत अन्य हिन्दू तीर्थस्थलों के विकास की दुहाई देकर मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में है.

सपा और योगी सरकार के बीच अंतर को दर्शाने की कड़ी में भाजपा की प्रदेश इकाई ने शुक्रवार को ट्वीट कर लिखा कि फर्क साफ है संस्कारो का. तब मुख्यमंत्री अखिलेश थे, सैफई में जनता के 'करोड़ों रुपये' लुटाकर नाच-गाने से अपना शौक पूरा करते थे. अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं,अयोध्या में भव्य दीपोत्सव का आयोजन कर 'करोड़ों रामभक्तों' का सपना पूरा कर आस्था का सम्मान करते हैं.

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गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव से पहले विभिन्न दलों के जनप्रतिनिधियों के दल बदलने का सिलसिला लगातार जोर पकड़ता जा रहा है. इस कड़ी में सत्तारूढ़ भाजपा के सबसे ज्यादा 14 विधायकों और मंत्रियों की आस्था में परिवर्तन देखने को मिला है वहीं बहुजन समाज पार्टी के नौ, कांग्रेस के पांच और सपा के एक विधायक पाला बदल चुके है.

भाजपा के 14 विधायकों में शामिल मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने हालांकि अभी अपने पद से इस्तीफा दिया है. लेकिन उनके आज या कल सपा में शामिल होने की पूरी संभावना है. भाजपा से किनारा करने वाले अधिकांश जनप्रतिनिधियों का कहना है कि योगी सरकार में दलित, पिछड़े और वंचित शोषित वर्ग की उपेक्षा की गयी है. जिससे आहत होकर वे पार्टी छोड़ने को विवश हैं.

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वहीं कांग्रेस छोड़ कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने वाले नरेश सैनी, अदिति सिंह और राकेश सिंह पार्टी में फैले असंतोष और परिवारवाद का आरोप लगा रहे हैं. बसपा से बाहर किये गये रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, असलम राइनी, असलम अली, मुजतबा सिद्दिकी, हाकिम लाल बिंद, हरगोविंद भार्गव, सुषमा पटेल और विनय शंकर तिवारी पूर्वांचल में पार्टी के समीकरण में उलटफेर कर सकते हैं. हालांकि बसपा प्रमुख मायावती के अनुसार पार्टी से बाहर किये गये विधायकों से उनकी पार्टी को काई फर्क नहीं पड़ेगा.

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