यूपी चुनाव 2022 में OBC वर्ग तय करेगा कौन संभालेगा प्रदेश, 32 फीसदी वोट पर काबिज
- यूपी विधानसभा 2022 आने से पहले सभी दल अपनी गणित बिठाने में लग गए हैं. सभी दल जातिगत आधार पर वोटिंग के शेयर के अनुसार लोगों को साधने में जुटे हैं. हमेशा की तरह इस बार भी 32 फीसदी वोट शेयर वाले ओबीसी वोटर्स की ओर सबकी नजर है. कभी सपा के साथ रहने वाला यह वर्ग अब भाजपा की ओर जा रहा है.

लखनऊ. यूपी विधानसभा 2022 चुनाव के आने के साथ ही प्रदेश में सभी दल अपनी सियासी गणित सेट करने में लग गए हैं. बयान और आरोपों के बीच किसी पर दलों की सबसे ज्यादा नजर है वो पिछड़े वर्ग के वोटर्स पर. 32 फीसदी वोट शेयर वाले यह वोटर प्रदेश में न सिर्फ किसी दल को आगे बढ़ाने बल्कि जीतने पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 2014 के लोकसभा में इन्हीं वोटर्स की बदौलत भाजपा ने यूपी में मजबूती से लोकसभा चुनाव जीता बल्कि 2017 में भी इनकी वजह से विधानसभा में भी भाजपा काबिज हुई. पिछड़ों की महत्ता जानने के चलते सभी चल इन्हें अपने साथ करने में लगे हुए, लेकिन इसमें सबसे आगे सपा और भाजपा है.
भाजपा चाहती है बनी रहे मजबूती, सपा वापस साधने को तैयार
यूपी विधानसभा 2022 में पिछड़ों को साथ लाने के लिए भाजपा लगातार योजनाओं से लेकर घोषणाओं में पिछड़ों का जिक्र कर रही है. भाजपा चाहती है कि यह वर्ग कहीं खिसक के न जाए. क्योंकि भाजपा जानती है इसका खिसकना पूरे राजनीतिक समीकरण बदल के रख सकता है. वहीं, कभी सपा के साथ रहे इस वर्ग को समाजवादी पार्टी दोबारा साथ लाने में जुटी है. क्योंकि समाजवादी पार्टी और उनके मुखिया अखिलेश जानते हैं कि सत्ता में वापसी के लिए इस वर्ग का साथ आना बहुत जरूरी है.
बिना नंबर की बुलेट पर सिंघम बने घूम रहे दारोगा की हेकड़ी SSP ने बीच सड़क निकाली
2007 में बसपा और 2012 में सपा को जीतने में रहे महत्वपूर्ण चेहरे
2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में जब मायावती चुनाव में आई थी, तब सोशल इंजीनियरिंग को इसके पीछे की वजह माना जा रहा था, लेकिन उस जीत में महत्वपूर्ण योगदान पिछड़ों का भी था. उस वक्त स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर, बाबू सिंह कुशवाहा समेत कई पिछड़ी जाति के नेता ने बसपा का साथ दिया और बसपा सत्ता में काबिज हुई. वहीं, 2012 के चुनाव में पटेल, चौहान, कुशवाहा, प्रजापति समेत कई इस जाति के कई नेता सपा के साथ थे, जिसका नतीजा यह हुआ कि सपा के अखिलेश यादव ने सीएम की कुर्सी संभाली.
UP में शिक्षक दिवस पर हर जिले में 75 टीचर, हेडमास्टर, प्रधानाचार्य को सम्मानित करेगी योगी सरकार
2014 से प्रदेश में बदले जातिगत समीकरण
लोकसभा चुनाव 2014 में पिछड़ों की बड़ी जातियां सपा और बसपा से अलग होकर भाजपा के साथ हो गई. जिसमें कुर्मी, कोइरी, राजभर, प्रजापति, लोहार, निषाद और पाल शामिल हैं. जिसका नतीजा लोकसभा चुनाव में यूपी में बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुई. इन जातियों ने ही आगे चलकर 2017 में विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता की चाबी दी. वहीं, सपा और बसपा से अलग होने की वजह से उनको चुनाव में इसका भारी नुकसान उठाना पड़ा. वहीं, भाजपा ने इस वर्ग को मजबूत करने के लिए पिछड़े वर्ग से आने वाली महिला नेता और अपना दल की अनुप्रिया पटेल को केंद्र में मंत्री बनाकर यह संदेश देने का भी काम किया, कि हम पिछड़ों के साथ है और उन्हें आगे बढ़ाना चाहते हैं.
यह है प्रदेश का पिछड़ों का जातिगत गणित
पिछड़ों में सबसे अधिक कोई जाति प्रदेश में है वो कुर्मी कुल वोटर्स में 5 फीसदी उनका ही वोट शेयर है. उसके बाद कुशवाहा 4.6 फीसदी, राजभर 4 फीसदी, प्रजापति 3.9 फीसदी, पाल 37 फीसदी, निषाद 4 फीसदी है. जिसमें यदि मझवारा समाज को भी जोड़े तो निषाद समाज का वोट करीब 10.35 फीसदी है. वहीं. विश्वकर्मा 3.3 फीसदी, चौहान 2.2 फीसदी, बिंद 1.9 फीसदी और अर्कवंशी 1.9 फीसदी वोट शेयर के साथ प्रदेश में सत्ता में अपनी दखल रखता है. 2001 में सामाजिक न्याय समिति के आंकड़े और राजनैतिक दलों की यह गणित है.
छोटे दलों के साथ जातिगत आधार पर कई वोटर्स चले जाते हैं जिसमें ओमप्रकाश राजभर , बाबू सिंह कुशवाहा समेत कई नेता हैं जिनके साथ इनकी जाति के वोटर्स रहते हैं और जिन पार्टियों से इनका गठबंधन रहता है उनको इसका सीधा फायदा मिलता है.
अन्य खबरें
कानपुर: लापता 65 साल के कपड़ा व्यापारी का संदिग्ध हालत में मिला शव, पुलिस जांच में जुटी
UP की अंतरराज्यीय सीमाओं पर बनेंगे स्वागत द्वार, ऐसे बॉर्डर गेट बनवाएगी यूपी सरकार
UP में सड़कों पर कूड़ा फेंकना पड़ेगा भारी, लगेगा भारी जुर्माना