करोड़ों के घाटे में चल रही है लखनऊ मेट्रो, शासन से लगाई मदद की गुहार
- लखनऊ मेट्रो पांच साल बाद भी करोड़ो के घाटे में चल रही है. यात्रियों की कमी की वजह से मेट्रो 194.85 करोड़ रुपए के घाटे मे चल रही है. लखनऊ मेट्रो निर्माण लागत 3500 करोड़ रुपये कर्ज की किस्त तक नही भर पा रही है. अब लखनऊ मेट्रो ने शासन से वित्तीय बजट में राशि के प्रावधान का अनुरोध किया है.
लखनऊ. राजधानी की शान कही जाने वाली लखनऊ मेट्रो करोड़ो के घाटे में चल रही है. कम राइडरशिप होने की वजह से लखनऊ मेट्रो 194.85 करोड़ रुपए के घाटे मे चल रही है. हालत इतने ज्यादा खराब हैं कि लखनऊ मेट्रो निर्माण लागत 3500 करोड़ रुपये कर्ज की किस्त तक नही भर पा रही है. इसी के चलते लखनऊ मेट्रो ने शासन से मदद मांगी है. लखनऊ मेट्रो ने सरकार से वित्तीय बजट में राशि के प्रावधान का अनुरोध किया है. लखनऊ मेट्रो के संचालन को पांच साल हो चुके हैं. इसके बावजुद लखनऊ मेट्रो को उसके मुताबिक यात्री नही मिले.
लखनऊ मेट्रो को यूरोपियन इन्वेस्टमेंट बैंक से लिए गए कर्ज की किस्ते चुकानी थी. जिसे वह नही भर सका. लखनऊ मेट्रो को इस साल भी बैंक को दूसरी किस्त देनी है. जिसके लिए उसके पास रकम नहीं है. मेट्रो की अधिकारिक वेबसाइट पर दर्ज बैलेंस शीट के अनुसार लखनऊ मेट्रो का घाटा 194.85 करोड़ तक पहुंच गया है. इस घाटे में बैंक किस्त, ब्याज और टोकन की कमाई शामिल है. मेट्रो की ताजा स्थिति को देखते हुए वो इससे निकलने मेंअसमर्थ है. इसी वजह से मेट्रो ने शासन से मदद की गुहार लगाई है.
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लखनऊ मेट्रो ने सरकार से गुहार लगाई है कि वो बजट में घाटे की भरपाई के लिए प्रस्ताव रखा जाए. जिससे मेट्रो को रकम मिल सके और लटका हुआ कर्ज चुकाया जा सके. हाल के समय में मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा की अध्यक्षता में हुई बैठक में भी मेट्रो के इस प्रस्ताव को रखा गया था. UPMRC के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पुष्पा बेलानी ने बताया कि लखनऊ मेट्रो सात महीने कोविड-19 की वजह से बंद रही. संचालन बंद होने से इसकी भी प्रभावित हुई है.
राजधानी में सड़को पर भार कम करने और लोगों के अच्छे के लिए मेट्रो का निर्माण किया गया था. लखनऊ मेट्रो का एक उद्देश्य ये भी था कि वो ऑटो और टेम्पो का व्यवहारिक विकल्प बने. पर 5 साल के बाद भी ऐसा होते हुए नही दिख रहा. आज भी शहर के 80 प्रतिशत लोग ऑटो टेम्पो और निजी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. आकड़ो के मुताबिक लखनऊ मेट्रो में प्रतिदिन 70 से 75 हजार यात्री सफर करते हैं. जबकि मेट्रो को इससे दोगुने यात्रियों के लिए बनाया गया है.
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