लखनऊ: SC बनकर महिला प्रधानाचार्या ने 21 तक की नौकरी, ऐसे हुआ खुलासा

ABHINAV AZAD, Last updated: Sat, 18th Dec 2021, 9:54 AM IST
  • हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अनुसूचित जाति कोटे से नौकरी कर रही व प्रधानाचार्या के पद पर प्रोन्नति पा चुकी एक महिला की बर्खास्तगी को सही करार दिया है. याची को 30 नंवबर 1999 को सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिली थी. याची ने खुद को अनुसूचित जाति से संबंधित बताते हुए जाति प्रमाण पत्र भी लगाया था.
(प्रतीकात्मक फोटो)

लखनऊ. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक बड़ा फैसला दिया है. दरअसल, अनुसूचित जाति कोटे से नौकरी कर रही व प्रधानाचार्या के पद पर प्रोन्नति पा चुकी एक महिला की बर्खास्तगी को सही करार दिया है. महिला पिछले 21 साल से नौकरी कर रही थीं. न्यायालय ने कहा कि उसके द्व्रारा की गई धोखाधड़ी से उसकी नियुक्ति ही निरस्त हो जाती है. यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुन्नी रानी की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया.

याचिका में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, हरदोई के दो जुलाई 2021 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसके द्वारा याची की सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति को निरस्त करते हुए, उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था. मामले की सुनवाई करते हुए, 30 नंवबर को न्यायालय ने याची के सर्विस रिकार्ड को तलब किया. न्यायालय ने पाया कि याची को 30 नंवबर 1999 को सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिली थी. याची ने खुद को अनुसूचित जाति से संबंधित बताते हुए जाति प्रमाण पत्र भी लगाया था. साल 2004 में उसे प्रधानाचार्य के पद पर प्रोन्नति मिल गई.

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बताया जा रहा है कि महिला 30 नवंबर 1999 को सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त हुई थी. 30 नवंबर 2021 को कोर्ट ने याची के सर्विस रिकार्ड को तलब किया था, जिसमें इस बात का खुलासा हुआ. राजीव खरे नामक एक शख्स ने जिलाधिकारी हरदोई को शिकायत भेजकर बताया कि याची मुस्लिम समुदाय से है. उसकी सर्विस बुक में भी उसका मजहब इस्लाम लिखा है. मामले की जांच में पाया गया कि जाति प्रमाण पत्र पांच नवंबर 1995 को तहसीलदार, सदर, लखनऊ ने जारी किया है. वहीं याची के आवेदन पत्र में उसकी जाति अंसारी लिखी हुई थी.

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