सपा MP आज़म खान को योगी सरकार का झटका, लोकतंत्र सेनानी पेंशन लिस्ट से नाम काटा

Smart News Team, Last updated: Wed, 24th Feb 2021, 10:32 PM IST
  • एकबार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है.समाजवादी पार्टी की सरकार ने आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत जेल में बंद रहे बंदियों के लिए मीसा पेंशन शुरु किया किया गया था. जिसमें अब सपा सांसद आजम खां का नाम पेंशनधारियो के लिस्ट से नाम हटा दिया गाया है
सपा MP आज़म खान को योगी सरकार का झटका, लोकतंत्र सेनानी पेंशन लिस्ट से नाम काटा

लखनऊ: यूपी में सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार के फैसले के बाद एकबार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है.समाजवादी पार्टी की सरकार ने आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत जेल में बंद रहे बंदियों के लिए मीसा पेंशन शुरु किया किया गया था. जिसमें अब सपा सांसद आजम खां का नाम पेंशनधारियो के लिस्ट से नाम हटा दिया गाया है. सूची से नाम कटने के बाद अब हर माह बीस हजार रुपये मिलने वाली सपा सांसद की पेंशन बंद हो गई है. शासन ने मौजूदा तिमाही के पेंशनधारकों की सूची इसी हफ्ते प्रशासन को भेजा है. जिसमें सपा सांसद आजम खां का नाम नहीं है.

सपा की सरकार ने आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे मीसा बंदियों के लिए पेंशन योजना शुरू की थी. 2005 में मुलायम सिंह यादव सरकार में इस योजना की शुरुआत हुई. इस दौरान सपा सांसद आजम खां समेत रामपुर जिले में 37 लोकतंत्र सेनानी को पेंशन के लिए चिन्हित किया गया था. और पांच सौ रुपये प्रतिमाह के हिसाब से पेंशन देना शुरू किया था. इसके एक साल बाद इसे बढ़ाकर एक हजार किया गया था और फिर बाद में इस पेंशन को 15 हजार रुपये प्रति माह कर दिया गया था.

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बीजेपी की योगी सरकार ने पेंशन की रकम बढ़ाते हुए इसे बीस हजार रुपये कर दिया था. लेकिन अब आजम खां की पेंशन बंद कर दी गई है. सरकार की ओर से प्रशासन को भेजी गई लोकतंत्र सेनानियों की सूची में सपा सांसद आजम खां का नाम शामिल नहीं है. एक अन्य व्यक्ति का निधन हो जाने के कारण उनका नाम भी काटा गया है. शासन की सूची के आधार पर अब प्रशासन ने 35 लोगों की पेंशन जारी कर दी है. बता दें कि सपा सांसद आजम खां धोखाधड़ी समेत करीब सौ से ज्यादा मामलों में इन दिनों जेल में बंद हैं.

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वर्ष 2007 में मायावती की सरकार में इसे रोक दिया गया था. फिर वर्ष 2012 में पुनः सपा की अखिलेश यादव की सरकार बनी तो पेंशन की रकम तीन हजार कर दी गई. एक साल बाद ही बढ़ाकर छह हजार और इसके एक साल बाद 10 हजार और फिर 15 हजार रुपये कर दी गई. और अब बीजेपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार में इसे 20 हजार रुपये प्रतिमाह कर दिया गया था.

 

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