Ahoyi Ashtami 2021: अहोई अष्टमी में लखनऊ कानपुर प्रयागराज गोरखपुर मेरठ आगरा वाराणसी में चांद-तारे दिखने का टाइम

Anurag Gupta1, Last updated: Mon, 25th Oct 2021, 2:52 PM IST
कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी के रूप में मनाते है. इस बार महिलाएं  28 अक्टूबर को अपनी संतान की लंबी आयु के लिए अहोई अष्टमी का व्रत रखेंगी. ये व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद रखा जाता है. ये व्रत भी महिलाएं निर्जला रहती हैं शाम को तारे देखकर अर्घ्य देकर व्रत का पारण करती हैं.
संतानो की सुख समृद्धि के लिए रखा जाता है अहोइ अष्टमी व्रत

लखनऊ. अहोई अष्टमी का त्योहार करवा चौथ के चार दिन बाद आता है. कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई अष्टमी के रूप में मनाते है. इस वर्ष अहोई अष्टमी 28 अक्टूबर को है. इस दिन स्त्रियां अपनी संतान सुख, समृध्दि और लंबी आयु के लिए उपवास करती है और बिना अन्न-जल ग्रहण किए निर्जला व्रत रखती हैं. नि:संतान महिलाएं बच्चे की कामना में अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं. भारत में करवा चौथ की तरह ही अहोई अष्टमी का व्रत भी काफी प्रसिद्ध है. 

इस व्रत को भी महिलाएं करवा चौथ की तरह पूरा दिन निर्जला रहती है. शाम के समय आकाश में तारे देखकर अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है. इस दिन माताएं माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना करती हैं और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है और उनके लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस व्रत को करने से संतान की आयु बढ़ती है.

बिहार पटना मुजफ्फरपुर गया भागलपुर, झारखंड रांची बोकारो धनबाद अहोई अष्टमी कथा मुहूर्त

अहोई अष्टमी पूजा का मुहूर्त:

28 अक्टूबर दिन बृहस्पतिवार को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाएगा. अष्टमी तिथि 28 अक्टूबर दिन गुरुवार को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से शुरू हो रही है, जो अगले दिन 29 अक्टूबर सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. अहोई अष्टमी का पूजा मुहूर्त शाम 5 बजकर 42 मिनट से 6 बजकर 59 मिनट तक होगा. पूजा का मुहूर्त 01 घंटे 17 मिनट की अवधि का होगा. तारों के देखने का समय 6 बजे होगा. अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय का समय रात 11 बजकर 29 मिनट पर होगा.

अहोई अष्टमी की पूजा विधि: 

इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर साफ वस्त्र धारण करती हैं. फिर घर के मंदिर की दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाती हैं. मटके में पानी भरकर उस पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाती है और को ढक देती हैं. फिर वहां मौजूद महिलाएं अहोई माता की पूजा करती हैं और व्रत कथा पढ़ती हैं. रात के समय तारों को देखकर अर्ध्य देती हैं और व्रत तोड़ती हैं. अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग तरीके से करते हैं कहीं पर शंकर पर्वती की पूजा करते और मेवा, दूध, घी आदि का भोग लगाते हैं. लेकिन पारण तारे देखने के बाद अर्घ्य देकर ही करते हैं.

अहोई अष्टमी की कहानी:

मान्यता है कि अहोई अष्टमी की कथा पढ़े बगैर ये व्रत पूरा नहीं होता है. यह कथा रानी के सात पुत्रों की है जिनकी स्याहु के श्राप से जन्म लेते ही सातवें दिन मौत हो जाती थी. पौराणिक कथा ये है दिवाली के मौके पर लीपापोती के लिए साहुकार की बहुएं मिट्टी लेने गई साथ में साहुकार की बेटी भी गई. साहुकार की बेटी जिस जगह से मिट्टी खोद रही थी वहां पर एक स्याहु अपने बच्चों के साथ रहती थी. मिट्टी खोदते समय साहुकार की बेटी से अंजाने स्याहु का एक बच्चा मर गया था. इसलिए जब भी साहुकार के बेटी का कोई बच्चा होता तो वो स्याहु के श्राप से सातवें दिन ही मर जाता था. सात बच्चों की मृत्यु के बाद पंडित जी को बुलाया गया. तब पता चला की अंजाने में साहुकार की बेटी से जो पाप हुआ था ये उसकी वजह से हो रहा है. पंडित ने लड़की से अहोई माता की पूजा करने को कहा, इसके बाद कार्तिक कृष्ण की अष्टमी तिथि के दिन उसने माता का व्रत रखा और पूजा की. पूजा के बाद में अहोई माता ने सभी मृत संतानों को जीवित कर दिया. इस तरह से संतान की लंबी आयु और प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया जाने लगा.

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