कुम्हारों को मिलेगा सूरज की रोशनी से चलने वाला चाक, बनाएंगे मिट्टी के बर्तन

लखनऊ.कुम्हारी कला और मिट्टी से उपयोगी बर्तन बनाने की परंपरा हमारे देश में सदियों से रही है. गांवों के कुम्हार परिवार वर्षों से इस व्यवसाय में लगे हैं. हालांकि आधुनिकता और मशीनी युग में यह व्यवसाय अब कम होता जा रहा है. बिल्कुल देसी और प्रदूषण से मुक्त इस कला और शिल्प को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार के खादी और ग्रामोद्योग आयोग आगे आया है. आयोग मिट्टी से बर्तन बनाने में उपयोग होने वाले परंपरागत चाक की जगह एक ऐसा चाक कुम्हारों को देने जा रहा है, जो सूरज की रोशनी से चलेगा. इसे सोलर चाक नाम दिया गया है.
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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग की पहल पर प्रदेश में आत्मनिर्भर योजना के तहत 19 जिलों को इसके लिए चुना गया है. इसकी शुरुआत अमेठी के 100 कुम्हार परिवारों से की जा रही है. इसकी मदद से कुम्हारों को अपनी कला के विकास में मदद मिलेगी, साथ ही सूरज की रोशनी से चलने की वजह से उन्हें चाक चलाने में कम मेहनत करनी पड़ेगी.
आयोग के राज्य निदेशक डीएस भाटी के मुताबिक अमेठी की सफलता के बाद इसे पूरे प्रदेश के कुम्हारों को दिया जाएगा. उनके मुताबिक इस काम से कुम्हारी कला के साथ ही शहद उत्पादन, लेदर क्राफ्ट और लकड़ी की कला के कारीगरों को भी अपनी कला और रोजगार को आगे बढ़ाने में मदद मिल सकेगी. उन्होंने बताया कि लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के साथ ही चारों विधाओं में 200-200 कामगारों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाएगा. यह प्रशिक्षण कई चरणों में होगा.
खादी और ग्रामोद्योग आयोग की इस पहल से कुम्हारों को तो फायदा होगा ही, साथ ही स्वरोजगार बढ़ाने और नगरों को प्रदूषण मुक्त करने में भी मदद मिलेगी.
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