धनतेरस: सिर्फ रुपया-पैसा नहीं, जाने शास्त्रों में दिए धन के ये पांच मतलब

Smart News Team, Last updated: Thu, 12th Nov 2020, 3:59 PM IST
  • आज देश-भर में धनतेरस का पर्व मनाया जा रहा है. 
धनतेरस 2020: सिर्फ रुपया-पैसा नहीं, जाने शास्त्रों में दिए धन के ये पांच मतलब

लखनऊ: दीवाली से पहले देश भर में धनतेरस का त्योहार जोर शोर से मनाया जाता है. धनतेरस पर नए बर्तन या सोने, चांदी के आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है. लेकिन इन सब के साथ ही धन का मतलब सिर्फ पैसे से नहीं होता है. धन का मतलब और इसके बारे में जानना और समझना बेहद जरुरी है. 

शास्त्रों में धन के पांच मतलब समझे गए हैं.  'धन' का अर्थ पहला 'ज्ञान' माना जाता है. जिसके बलबूते सारे विश्व को जीता जा सकता है. संस्कृत में ज्ञान के बारे में बताते हुए कहा गया है कि "व्यये कृते वर्धत एव नित्यम, विद्दा धनं सर्व धनम प्रधानम" जिसका अर्थ हैं कि ज्ञान को जितना अधिक दूसरों को बांटा जाता है उतना अधिक बढ़ता है. धन का दूसरा मतलब 'सदगुण' समझा गया है. जिसके लिए लिखा गया है कि "गुणा: सर्वत्र पूजयन्ते न महत्योअपि संपद:। पूर्णन्दु किं तथा वन्द्दो निष्कलंको यथा कश:।" इसके बारे में चाणक्य कहते हैं कि जैसे पूर्णिमा के दिन चांद को पूजा जाता है, वैसे ही सदगुणों वाला व्यक्ति भी हर जगह पूजा जाता है.

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धन का तीसरा और सबसे खास अर्थ स्वास्थय को माना गया है क्योंकि स्वास्थ्य' को जिसने ठीक रखा वह सब तरह के धन हासिल कर सकता है. इस बारे में महाकवि कालिदास अपनी रचना कुमारसंभवम् में लिखते हैं "शरीरमाद्दं खल धर्मसाधनम" जिसका मतलब है शरीर ही सभी धर्मों को पूरा करने का साधन है.साथ ही धन का चौथा मतलब 'शील' यानी व्यवहार को माना गया है. इससे व्यक्ति के बारे में पता चलता है. इसके लिए लिखा गया है कि "विदेशेषु धनं विद्दा व्यसनेषुधनं मति परलोके धनं धर्म शीलं सर्वत्र वै धनम", जिसका अर्थ है कि परलोक में  आपका व्यवहार ही आपका धन है. 

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धन का आखिरी और सबसे जरुरी मतलब संतोष को माना गया है. लोग सब कुछ जुटा तो लेते हैं लेकिन उन्हें संतोष नहीं होता है. इसके लिए शास्त्रों में लिखा है कि "अंतो नास्ति पिपासाया: संतोष परम सुखम। तस्मात संतोषमेवेह धनं पश्यति पंडिता" जिसका मतलब है कि लोगों की इच्छाएं अपार है लेकिन संतुष्ट होना बहुत जरुरी है इसलिए जिसके पास जितना है वो उतने में खुश रहे.

 

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