धनतेरस 2021 पर बर्तन खरीदने के लिए यूपी के लखनऊ कानपुर प्रयागराज गोरखपुर मेरठ आगरा वाराणसी में शुभ मुहूर्त
- कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाया जाता है. दिवाली के लिए शुभ खरीदारी करने के साथ धनवंतिर, कुबेर, लक्ष्मी, गणेश और यम की पूजा करते हैं. धनतेरस मुहूर्त सुबह 06 बजकर 18 मिनट और रात दस से 08 बजकर 11 मिनट और 20 सेकेंड तक रहेगा.
दिवाली के दो दिन पहले 2 नवंबर दिन मंगलवार को धनतेरस है. कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन धनतेरस मनाया जाता है. धनतेरस के दिन लोग दिवाली के लिए शुभ खरीदारी करने के साथ धनवंतिर, कुबेर, लक्ष्मी, गणेश और यम की पूजा करते हैं. इसमें लोग आभूषणों, भूमि, संपत्ति, वाहन और अन्य भौतिक वस्तुओं की खरीदी करते हैं. धनतेरस पर बर्तन खरीदने का जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि.
हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस मनाया जाता है. धनतेरस पर बर्तन, सोना-चांदी के आभूषण, भूमि, संपत्ति, वाहन, भोग विलास की वस्तुएं आदि खरीदना अत्यंत शुभ होता है. लोग इस नक्षत्र में नया व्यापार व्यवसाय भी शुरू करते हैं. माना जाता है इस दिन लक्ष्मी पूजा करने से समृध्दि आती है और इस दिन किए कार्य शुभ होते हैं और धन की कभी कमी नहीं रहती है.
बर्तन खरीदने का महत्व:
अगर आभूषण खरीदने की स्थिति नहीं है तो पीतल के बर्तन खरीदकर उसमें कुछ मीठा या अक्षत डालकर घर लाएं. धनतेरस पर किसी चीज़ से भरा हुआ पीतल का बर्तन लाना बड़ा ही अच्छा माना जाता है. पीतल बर्तन के पीछे मान्यता छुपी है. माना जाता है समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वन्तरि का अवतरण हुआ था, तब वो अपने दो बायें हाथों में से एक में अमृत से भरा पीतल का कलश लिये हुए थे और उनके बाकी हाथों में शंख, चक्र और औषधी विद्यमान थी, लिहाजा इस दिन पीतल का बर्तन खरीदना बहुत ही शुभ होता है.
धनतेरस पूजा मुहूर्त और खरीदने का शुभ समय:
अभिजीत मुहूर्त– सुबह 11:42 से 12:26 तक, वृषभ काल– शाम 06:18 से 08:14: तक, गोधूलि मुहूर्त- शाम 05:05 से 05:29 तक वहीं प्रदोष काल- शाम 05:35 से 08:14 तक और निशिता मुहूर्त- रात्रि 11:16 से 12:07 तक.
धनतेरस पूजा मुहूर्त सुबह 06 बजकर 18 मिनट और रात दस से 08 बजकर 11 मिनट और 20 सेकेंड तक रहेगा. इस समय अवधि में धन्वंतरि देव की पूजा की जाएगी.
धनतेरस पूजा विधि:
घर के ईशान कोण में ही पूजा करें. मुंह ईशान, पूर्व या उत्तर में होना चाहिए. पंचदेव यानी सूर्यदेव, श्रीगणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु की स्थापना करें. भगवान लक्ष्मी, कुबेर व धन्वंतरि की मूर्ति का स्थापना करें. मूर्ति के आगे दीप और धूपबत्ती जलाए. देवी देवताओ को धूप, दीप जलाकर मस्तक पर हल्दी, कुमकुम, चंदन, चावल लाल फूल अर्पित करें. पूजा के दौरान अनामिका अंगुली से गंध यानी चंदन, कुमकुम, अबीर, गुलाल, हल्दी आदि लगाना चाहिए। षोडशोपचार की सभी सामग्री से पूजा कर मंत्र जाप करें. धन्वंतरि देव की षोडशोपचार या 16 क्रियाओं से पूजा करें. पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार. अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाएं. घर या मंदिर में जब भी विशेष पूजा करें तो इष्टदेव के साथ स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी किया जाता है. पूजा के दौरान लक्ष्मी मंत्र का जाप करें और कुछ मीठे का भोग लगाए. याद रखें नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं होगा. हर पकवान पर एक तुलसी पत्ता भी रखें. घर के हर कोने में दीपक जलाए. अंत में आरती करते हुए नैवेद्य चढ़ाकर पूजा पूरी करें.