टैगोर और जानकी बल्लभ शास्त्री के साहित्य में वेदना और आत्मविश्वास एक समान

मुजफ्फरपुर. हिंदी संस्कृत के विद्वान कवि आचार्य जानकीवल्लभ के लिए निराला निकेतन में महावाणी स्मरण की चर्चा की गई. हिंदी के छायावाद और उत्तर छायावाद से प्रगतिवाद-प्रयोगवाद तक उनका लेखन बिना रुके चलता रहा है. उनकी लेखनी कहीं नहीं रुकी. वह अपने लेखन से भाव और विचार को सौंदर्यमयी भाषा में लिखते रहे.
शुक्रवार को निराला निकेतन में उन्हें याद करते हुए इन सब बातों पर चर्चा की गई. डॉ. संजय पंकज ने कहा कि आज विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर की भी जयंती है. शास्त्री जी और रविंद्रनाथ ठाकुर के लेखन में दुख, वेदना और आत्मविश्वास एक समान दिखता है.
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डॉ. संजय पंकज ने रवींद्रनाथ और जानकीवल्लभ शास्त्री जी को याद करते हुए कहा कि दोनों रचनाकारों की रचनात्मक प्रतिस्पर्धा हमेशा रही. रवींद्रनाथ ठाकुर जिन विधाओं में लेखन करते आचार्य जानकी भी उन्हीं में अपना लेखन करते रहे.
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शुक्रवार के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कवि-कथाकार डॉ. रामेश्वर द्विवेदी ने कहा कि शास्त्री जी कालिदास, रवींद्र और निराला जिस मिट्टी में रहे वह उसी में रहे हैं. उन्होनें साहित्य की सभी परिचित और प्रचलित विधाओं पर लिखा है. डॉ. विजय शंकर मिश्र ने कहा कि आचार्य शास्त्री जीवन और संघर्ष के रचनाकार रहे हैं.
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लखनऊ का निराला निकेतन शुक्रवार को काव्य पाठ से गूंज उठा. डॉ. मिश्र ने शास्त्री जी के लोकप्रिय गीत से कवि सम्मेलन की शुरुआत की थी. काव्यपाठ करते हुए कवि-चित्रकार गोपाल फलक ने भी आचार्य जानकीवल्लभ को गीत समर्पित किया. शोभाकांत मिश्र ने कविता के साथ कहा कि कोरोना वायरस अकेले नहीं आया है वह अपने साथ महामारी और गरीबी लाया है.
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