मुहर्रम में क्यों मनाया जाता है गम, जानें हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का इतिहास
- इस्लामिक कैलेंडर के पहले दिन मुहर्रम होता है. इसे गम का महीना भी माना जाता है. इस बार मुबर्रम 19 अगस्त को है. इस दिन ताजिया जुलूस निकाला जाता है और हज़रत इमाम हुसैन को कर्बला में दफन किया जाता है. शोक के पर्व मुहर्रम में हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है.

मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है. इस्लाम में इसे शोक का महीना माना जाता है. शिया मुसलमान इसे 'शोक' का महीना कहते हैं. शिया समुदाय के लोग इस महीने के नौवें या दसवें दिन रोजा रखते हैं और हज़रत इमाम हुसैन को कर्बला में दफनाया जाता है. मुहर्रम के दिन हज़रत इमाम हुसैन सहित कर्बला के 72 शहीदों की शहादत को याद करते हुए मातम मनाया जाता है. इस बार मुहर्रम 19 अगस्त 2021 को भारत में है. हालांकि कोरोना महामारी के कारण कई राज्यों में मुहर्रम के लिए गाइडलाइ जारी किए गए. इन सख्त निर्देश का उद्देश्य भीड़ भाड़ को कम करने के लिए है.
हजरत इमाम हुसैन मुहर्रम की शहादत का इतिहास- इस्लाम के आखिरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद के मुस्तफा के नाती हजरत इमाम हुसैन मुहर्रम के दसवें दिन कर्बला की लड़ाई में शहीद हो गए थे. उनके साथ अन्य 71 भी कर्बला की लड़ाई में शहीद हो गए. इसमें हज़रत इमाम हुसैन का छह महीने का बेटा भी शामिल है. बता दें , कर्बला की लड़ाई इमाम हुसैन और क्रूर उमय्यद खलीफा यज़ीद के बीच लड़ी गई थी.
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कर्बला की लड़ाई में सभी शहीदों की याद में हर साल ताजिया बनाया जाता है और जुलूस निकाला जाता है. मातम मनाने के बाद कर्बला को दफनाया जाता है. हज़रत इमाम हुसैन का मकबरा इराक में है. इमाम हुसैन के जीवन से मुस्लिम समुदाय के लोगों को प्रेरणा मिलती है उनके विचार और उद्देश्य बहुत कुछ सिखाता है.
इमाम हुसैन के जीवन से लोगों के ये पांच बातें जरूर सीखनी चाहिए.
सम्मानजनक मौत एक शर्मनाक जीवन से कहीं बेहतर है.
जब तक आप अधिकारों की वकालत नहीं करते, आपकी बुद्धि पूर्ण नहीं है.
हमेशा नेकी के रास्ते पर चलो, चाहे वह कितना भी कठिन हो.
सबसे अच्छा शासक वही है जो क्रूरता को समाप्त करता है और न्याय के लिए खड़ा होता है.
पीठ पीछे किसी की बात करते समय वही बोलें जो आप अपने बारे में सुनना चाहेंगे.
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