Rangbhari Ekadashi 2022: रंगभरी एकादशी पर पढ़ें ये कथा, मिलेगा सुख-समृद्धि का वरदान

Pallawi Kumari, Last updated: Sun, 6th Mar 2022, 5:09 PM IST
  • होली के त्योहार से 5 दिन पहले रंगभरी एकादशी व्रत रखा जाता है. इस दिन को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.रंगभरी एकादशी के दिन मान्यता है कि माता गौरा पहली बार शिवजी के साथ कैलाश पहुंची थीं. इस दिन शिव-पार्वती की पूजा का विधान है. इस बार रंगभरी एकादशी रविवार 13 मार्च को पड़ रही है.
रंगभरी एकादशी शिव-पार्वती पूजा (फोटो-लाइव हिन्दुस्तान)

हर महीने दो एकादशी तिथि पड़ती है. वैसे तो एकादशी का दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना के लिए समर्पित होता है. लेकिन फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी जोकि होली से ठीक 5 दिन पहले होती है, इसे रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है.रंगभरी एकादशी पर माता पार्वती और शिवजी की पूजा करने और व्रत रखने का विधान है. सभी एकादशी में रंगभरी एकादशी खास मानी जाती है. क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु, शिवजी और माता पार्वती के साथ आंवले के पेड़ की भी पूजा होती है.

 धार्मिक मान्यता और पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव माता पार्वती को काशी लेकर आए थे. इसलिए इस दिन शिव-पार्वती की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है. इस दिन पूजा और व्रत करने के साथ ही रंगभरी एकादशी की व्रत कथा जरूर पढ़नी चाहिए.  इससे पूजा सफल मानी जाती है और भगवान के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि का विकास होता है.

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पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में चित्रसेन राजा के राज्य में एकादशी व्रत का बहुत महत्व था. राजा की आमलकी व्रत के प्रति गहरी आस्था थी. राजा और प्रजा सभी एकादशी का व्रत करते थे. एक बार राजा शिकार करते हुए जंगल में गए और दूर निकल गये. तभी कुछ जंगली और पहाड़ी डाकुओं ने राजा को घेर लिया और राजा पर प्रहार करने लगे. 

लेकिन ईश्वर की कृपा से डाकूओं के अस्त्र-शस्त्र फूल बन जा रहे थे. तभी राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और उसने सभी डाकूओं को मार दिया. इन सब का आभास राजा को नहीं हुआ क्योंकि वह बेहोश हो गए थे. लेकिन जब उन्हें होश आया तो डाकूओं को भूमि पर मरा हुआ कर आश्चर्य हो गए.

राजा के मन में सोना कि इन डाकुओं को आखिर किसने मारा. तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन! यह सब दुष्ट तुम्हारे आमलकी एकादशी का व्रत करने के प्रभाव से मारे गए हैं. ये बात सुनकर राजा को प्रसन्नता हुई. इस घटना के बाद से एकादशी के व्रत के प्रति राजा की श्रद्धा और भी बढ़ गई. वह विधि-विधान से इस व्रत करने लगा और उसका जीवन सुख-समृद्धि से भर गया.

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