Delhi Meerut RRTS के लिए आनंद विहार में बनेगी देश की सबसे चौड़ी टनल, निर्माण शुरू

Naveen Kumar, Last updated: Fri, 4th Mar 2022, 1:21 PM IST
  • दिल्ली और मेरठ के बीच भारत की पहली रीजनल रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (RRTS) का निर्माण कार्य शुरू हो गया है. आनंद विहार में विशालकाय मशीनों की सहायता से देश की सबसे चौड़ी सुरंग बनाई जा रही है.
फाइल फोटो

मेरठ. दिल्ली और मेरठ के बीच देश के पहले क्षेत्रीय रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (आरआरटीएस) कॉरिडोर के निर्माण के लिए सुरंग निर्माण कार्य शुरू हो गया है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रीय परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) ने गुरुवार को कहा कि आनंद विहार से दिल्ली के न्यू अशोक नगर तक टनल बनाने का काम शुरू किया गया है. आरआरटीएस ट्रेनों की रफ्तार 180 किमी प्रति घंटे होने के कारण 6.6 मीटर व्यास की आरआरटीएस सुरंगें अन्य मेट्रों सिस्टम की तुलना में बड़ी है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र परिवहन निगम (एनसीआरटीसी) के अनुसार, यह ट्रेनों की स्पीड के कारण हवा का दबाव कम करेगी और यात्रियों को असुविधा भी नहीं होगी. इस सुरंग की लंबाई आनंद विहार और न्यू अशोक नगर के बीच करीब 3 किलोमीटर होगी. बता दें कि आनंद विहार स्टेशन से चार टीबीएम शुरू किए जाने हैं, जिनमें आनंद विहार से न्यू अशोक नगर की ओर ड्राइव के लिए दो, आनंद विहार से साहिबाबाद की ओर ड्राइव के लिए दो, आनंद विहार से साहिबाबाद की ओर जाने वाले टीबीएम में से प्रत्येक में लगभग 2 किमी सुरंगों का निर्माण होगा.

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आरआरटीएस के अंडरग्राउंड भागों में ट्रेनों के आवाजाही के लिए दो अलग-अलग सुरंगें खोदी जाएगी. इमरजेंसी के दौरान यात्रियों की सुरक्षा के लिए आपातकालीन निकास भी तैयार किया जाएगा. इसमें लगभग हर 250 मीटर पर एक क्रॉस-पास भी होगा. पूरे 82 किलोमीटर लंबे दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ आरआरटीएस कॉरिडोर पर निर्माण कार्य जोरों पर है. इस कॉरिडोर में 25 स्टेशन होंगे, जिनमें दो डिपो और एक स्टेबलिंग यार्ड शामिल हैं. साहिबाबाद से दुहाई के बीच प्रथम भाग को मार्च 2023 तक शुरू किया जाना है. 2025 तक पूरा कॉरिडोर जनता के लिए खोल दिया जाएगा. बता दें कि आरआरटीएस कॉरिडोर वायु प्रदूषण और वाहन ट्रैफिक को कम करने के मकसद से तैयार किए जा रहे हैं.

इस कार्य में 14,000 से अधिक मजदूर और 1,100 इंजीनियर लगे हुए हैं. 1,400 पियर्स के साथ प्राथमिकता अनुभाग के 18 किमी के वायडक्ट का निर्माण किया गया है. कॉरिडोर के 80 फीसदी हिस्से के लिए फाउंडेशन का काम पूरा हो चुका है.

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