मेरठ व्यापरी मंडल ने की घंटाघर पर सेल्फी प्वाइंट बनवाने की मांग

Komal Sultaniya, Last updated: Sun, 6th Mar 2022, 7:04 PM IST
  • मेरठ में रविवार को अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के पदाधिकारियों की बैठक शहर कार्यालय एनएएस इंटर कॉलेज के पास पर मीटिंग हुई. इसमें शहर अध्यक्ष लोकेश चंद्रा ने कमिश्नर से मागं की है कि कमिश्नर ऑफिस गेट के बराबर में जिस तरह सेल्फी प्वाइंट बनाया गया है. इसी तरह से एक सेल्फी प्वाइंट शहर के ऐतिहासिक घंटाघर पर भी बनाया जाए.
मेरठ व्यापरी मंडल ने की घंटाघर पर सेल्फी प्वाइंट बनवाने की मांग

मेरठ.  मेरठ में घंटाघर एक ऐसी इमारत है जो अपनी विशेष बनावट के चलते अपनी तरह की इमारतों में सबसे अनूठी है. वैसे तो खुद क्रांतिधरा मेरठ भी अपने आप में एक अनूठा शहर है. भारत के किसी भी पुराने शहर की ही तरह मेरठ में भी आपको वो हर रंग-रूप मिल जाएगा जिसमें भारतीय संस्कृति की झलकियां साफ छलकती हैं. बात चाहे उद्योगों की हो, व्यापार की हो, स्पोर्ट्स उत्पाद निर्माण की हो या फिर खान-पान की हो.

मेरठ में रविवार को अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के पदाधिकारियों की बैठक शहर कार्यालय एनएएस इंटर कॉलेज के पास पर मीटिंग हुई. इसमें शहर अध्यक्ष लोकेश चंद्रा ने कमिश्नर से मागं की है कि कमिश्नर ऑफिस गेट के बराबर में जिस तरह सेल्फी प्वाइंट बनाया गया है. इसी तरह से एक सेल्फी प्वाइंट शहर के ऐतिहासिक घंटाघर पर भी बनाया जाए. कहा कि शहर घंटाघर मेरठ की पहचान है. इसी क्षेत्र में राष्ट्रीय कपड़ा मार्केट भी है और सराफा मार्केट भी क्षेत्र में आता है. जहां पर पूरे भारतवर्ष के व्यापारी यहां पर आते हैं. सेल्फी प्वाइंट बनने से हमारे घंटाघर की शान-मान पूरे भारतवर्ष में बढ़ेगा. बैठक में कुलदीप गुप्ता, इरशाद सैफी, मुकेश बड़ोदिया, हर्ष बंसल, सौरभ जाटव, रौनक कपूर, पुनीत बंसल रहे.

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कब हुआ था घंटाघर का निर्माण?

मेरठ के घंटाघर का निर्माण अंग्रेजों ने सन 17 मार्च 1913 में शुरू कराया था. उस समय भी ये इलाक शहर का सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका था. हालांकि उस दौर में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी जितनी की आज इस इलाके में भीड़भाड़ होती है. ठीक 1 साल बाद यानि सन 1914 में ये घंटा घर बनकर तैयार हुआ. कहा जाता है कि इस घंटा घर में लगाने के लिए अंग्रेजों ने जर्मनी से घड़ी का ऑर्डर किया था. लेकिन जिस जहाज से समंदर के रास्ते ये घड़ी आ रही थी वो समंदर में ही डूब गया और उसके साथ ही वो घड़ी भी डूब गई. तब अंग्रेजों ने उस वक्त इलाहबाद हाईकोर्ट में लगी घड़ी इस घंटाघर में लगवाने के लिए मंगवाई.

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