मेरठ. भादो में हुई पहली बारिश से किसान गदगद, तीन-चार दिनों तक होगी झमाझम बारिश
- मानसून के पश्चिम उत्तर प्रदेश पर मेहरबान होने की संभावना मेरठ में जुलाई-अगस्त में होती है सबसे ज्यादा बारिश औसत से 32 फीसदी कम हुई इस बार वर्षा

मेरठ। भादो लगते ही मौसम एक बार फिर मेरठ जिले में मेहरबान नजर आ रहा है सोमवार को कोई बारिश के किसान गदगद हो उठे बारिश नहीं होने से किसान बेचैन हो रहे थे. कुछ किसानों ने खेतों की सिंचाई भी शुरू कर दी थी. मेरठ में भादो में पहली बार अच्छी बारिश होने के आसार दिख रहे हैं.
सोमवार को दिन में दो- तीन बार थोड़े थोड़े अंतराल की बारिश हुई. बारिश एक समान सभी क्षेत्रों में नहीं हुई. पर इस मौसमीय परिवर्तन से उमस भरी गर्मी से लोगों को जरूर राहत मिली.
सुबह तेज़ धूप खिली रही जिसके चलते पारा 37 डिग्री तक पहुंच गया. मौसम विभाग ने अगले तीन-चार दिन बारिश की संभावना जतायी है.
सोमवार को अधिकतम तापमान सामान्य से पांच डिग्री अधिक रहा. वहीं आर्द्रता का अधिकतम प्रतिशत 89 और न्यूनतम प्रतिशत 77 रहा. हालांकि रात के समय बारिश से शहर के निचले इलाकों में जलभराव हो गया.
इस बार हुई 32 प्रतिशत कम बारिश
कृषि प्रणाली संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक डा. एन सुभाष ने बताया कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में अभी तक 32 प्रतिशत कम बारिश हुई है. फसलों की वृद्धि के लिए बारिश होना जरूरी है. उन्होंने आगे कहा कि बंगाल की खाड़ी से हवाओं का प्रवाह बढ़ा हुआ है. मानसून की अक्षीय रेखा दिल्ली के ऊपर से गुजर रही है जिससे एनसीआर क्षेत्र में बारिश की संभावना बनी है.
जुलाई और अगस्त में होती है सर्वाधिक बारिश
मेरठ में अमूमन जुलाई और अगस्त में ही सर्वाधिक बारिश देखने को मिलती है. अगस्त का एक तिहाई समय बीत चुका है. लेकिन अभी तक सात मिलीमीटर बारिश ही रिकार्ड की गई है. पिछले कई दिनों से लगातार बादल छा रहे हैं लेकिन वर्षा नहीं हो रही है.
मेरठ कालेज के भूगोल विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. कंचन सिंह ने बताया कि संघनन और कंडक्टिविटी दो मुख्य प्रोसेस होते हैं जो बारिश के लिए जिम्मेदार होते हैं. रविवार को तापमान उच्च था जिससे आर्द्रता बढ़ी है. जिससे कम ऊंचाई के बादल बने और हल्की बारिश देखने को मिली.
लगातार बारिश के लिए जिम्मेदार उक्त दोनों प्रोसेस ठीक तरह से नहीं हो पाए. जिससे बारिश नहीं हुई.
बादलों में लगातार आर्द्रता के प्रवाह के लिए वन क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. वह वर्षा के लिए आवश्यक परिस्थिति का निर्माण करने में सहायक होते हैं. वन क्षेत्र में लगातार कटान हो रहा है. जिससे उक्त प्रोसेस बाधित हो रही है.
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